Thursday, March 24, 2016

8> माँ दुर्गा जी के 108 नाम + माँ शाकम्भरी देवी के तीन शक्तिपीठ

8>||*माँ दुर्गा जी के 108 नाम***( 1 to 4 )

1>----------ईश्वर के अस्तित्व को नकारा नही जा सकता है।
                 माँ दुर्गा जी के 108 नाम 
2>----------माँ शाकम्भरी देवी (देश भर में मां शाकंभरी देवी के 
                  तीन शक्तिपीठ)
3>----------दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप 
                  शाकंभर के नाम से स्थित है-
4>-----------तीसरा मां शाकंभरी का मंदिर स्थान बेहट, सहारनपुर, 
                   उत्तरप्रदेश शिवालिक पर्वतमाला के घने जंगल में –
========================================================================


1>ईश्वर के अस्तित्व को नकारा नही जा सकता है।

भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें माँ दुर्गाशक्तिकी उपासना प्रमुख हैं। माँ दुर्गा शक्ति की उपासना को उतना ही प्राचीन माना जाता है , जितना शिववांङ्मय में सर्वप्राचीन साहित्य अपौरुषेय वेद को। यही कारण है कि देवी कहती हैं- 'मैं रुद्रों एवं वसुओं के रूप में विचरण करती हूं।

माँ दुर्गा शक्ति की उपासना से जीव का कल्याण होता है। माँ दुर्गा शक्ति सभी जीवों की रक्षा करने वाली है। सृष्‍टि का संहार और पालन करने की अपार शक्ति उनके पास है। माँ अपने भक्तों के लिए सदैव भक्तों ने हर प्रकार की पूजा और विधान से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के जतन किए। लेकिन अगर

आप व्यस्तताओं के चलते ‍विधिवत आराधना ना कर सकें तो मात्र 108 नाम के जाप करें

दुर्गा जी के 108 नाम

महारानी जग कल्याणी तेरी वाहन कमाल है शेर की सवारी माँ तुम्हारी बे मिसाल है

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ॠषिः, अनुष्टुप

छन्दः, श्रीमहाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वत्यो देवताः,

सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ।

1-ॐज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १ ॥

2 - दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।

दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥ २ ॥

3 - सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।शरण्ये त्र्यंम्बके गौरि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ३ ॥ 4 - शरणागतदीनार्तपरित्राणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ॥ ४ ॥

5 - सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ॥ ५ ॥

6 - रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् । त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां

7 - त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्र्यन्ति ॥ ६ ॥सर्वबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ७ ॥

देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

1-सती-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 2-वैष्णवी-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   3-चामुंडा
4-साध्वी-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  5-वाराही-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - - 6-भवानी
7-भवप्रीता-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  8-लक्ष्मी-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  9-भवमोचनी
10-पुरूषाकृति-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  11-आर्या-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 12-विमला
13-दुर्गा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  14-उत्कर्षिणी-  -  -  -  -  -  -  -  -  - 15-जया
16-ज्ञाना-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 17-आद्या-  -  --  -  -  -  -  -  -  -  -   18-शूलधारिणी
19-बुद्धिदा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 20-पिनाकधारिणी-  -  -  -  -  -  -  -  21-क्रिया
22-त्रिनेत्रा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  23-नित्या-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  24-चंद्रघंटा
25-सर्ववाहनवाहना-  -  -  -  -  -  -  -  26-बहुला -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -27-चित्रा
28-निशुम्भशुम्भहननी-  -  -  -  -  -  -  29-मन:-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   30-महिषासुरमर्दिनि
31-शक्ति-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   32-बहुलप्रेमा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  33-महातपा
34-मधुर्कटभहंत्री -  -  -  -  -  -  -  -  - 35-अहंकारा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -   36-चण्डमुण्डविनाशिनि
37-चित्तरूपा-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 38-सर्वअसुरविनाशिनि-  -  -  -  -  -  39-चिता
40-सर्वदानघातिनी-  -  -  -  -  -  -  -   41-चिति-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - - 42-सर्वशास्त्रमयी
43-सर्वमंत्रमयी-  -  -  -  -  -  -  -  -  - 44-सत्ता -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -45-सर्वअस्त्रधारिणी
46-सत्यानंदस्वरुपिणी-  -  -  -  -  -  - 47-अनेकशस्त्रहस्ता-  -  -  -  -  -  -  -48-अनन्ता
49-अनेकास्त्रधारिणी-  -  -  -  -  -  -  -50-भाविनि-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -51-कुमारी
52-भाव्या -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  53-एककन्या -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  54-भव्या
55-कैशोरी -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -56-अभव्या -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   - 57-युवति
58-सदागति -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 59-यति:-  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 60-शाँभवि
 61-अप्रौढ़ा -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -62-देव माता -  -  -  -  -  -  -  -  -  -   63-प्रौढा़
64-चिंता -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 65-वृद्धमाता -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -66-रत्नप्रिया
67-बलप्रदा -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -68-सर्वविद्या -  -  -  -  -  -  -  -    -  -  69-महोदरी
70-दक्षकन्या--  --  --  --  --  --  --  -- 71-मुक्तकेशी--  --  --  --  --  --  --  -72-दक्षयज्ञविनाशिनी
73-घोररूपा -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 74-अपर्णा -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 75-महाबला
76-अनेकवर्णा -  -  -  -  -  -  -  -  -  - -77-अग्निज्वाला -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 78-पाटला
79-रुद्रमुखी -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -80-पाटलावती -  -  -  -  -  -  -  -  - -  81-कालरात्रि
82-पट्टाम्बरपरिधाना--  --  --  --  --  -- 83-तपस्विनी--  --  --  --  --  --  --  -- 84-कलमंजिररंजिनी
 85-नारायणी--  --  --  --  --  --  --  --  86-अमेय विक्रमा--  --  --  --  --  --  -87-भद्रकाली
88-क्रूरा --  --  --  --  --  --  --  --  --   89-विष्णुमाया--  --  --  --  --  --  --  --90-सुंदरी
91-जलोदरी----  --  --  --  --  --  --  --92-सुरासुंदरी--  --  --  --  --  --  --  --93-शिवदूती
94-वनदुर्गा -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 95-कराली -  -  -  -  -  -  -  -  - -  -  - 96-मांतंगी
97-अनंता -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -98-मतंगमुनिपूजिता -  -  -  -  -  -  -  -99-परमेश्वरी
100-ब्राह्मी -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  101-कात्यायनी -  -  -  -  -  -  -  -  -  - 102-माहेश्वरी
103-सावित्री -  -  -  -  -  -    -  -  -  -  -104-ऎंद्री -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -  -105-प्रत्यक्षा
106-कौमारी -  -  -  -  -  -  -  -   -  -  - 107-ब्रह्मवादिनी -  -  -  -  -  -  -  -  -  -108-बुद्धिबुद्ध

इससे भी माता प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती है। भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ जगत् की प्राणाधार हैं और अपने भक्तों की रक्षा के लिए आश्चर्यजनक प्रमाण प्रकट किया करती हैं।

भक्त इसलिए करते हैं ताकि उनका जीवन सफल हो सके माँ दुर्गा शक्ति अपने भक्तों की सभी प्रकार की बाधाओं एवं संकटों से उबारने वाली हैं और इनकी कृपा से समस्त पाप और इनकी मुद्रा सदैव युद्ध के लिए अभिमुख रहने की होती हैं, अत:भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं । माँ दुर्गा शक्ति के अवतार पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। देश के प्रत्येक क्षेत्र में माँ दुर्गा शक्ति की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव और माँ दुर्गा शक्ति के अवतार को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है।
================================================

2>माँ शाकम्भरी देवी (देश भर में मां शाकंभरी देवी के तीन शक्तिपीठ)

माँ शाकम्भरी देवी

पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है

“देवी भागवतम” हिंदू धर्म का एक पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। जो शाकम्बरी देवी की कथा का वर्णन करता है ।


देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं-
1>पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।
2>दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और
3>तीसरा उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

राजा रूरू के पुत्र दैत्य दुर्गम द्वारा हिमालय पर्वत पर ब्रह्मा जी तपस्या-
दुर्गम नाम का एक महान्‌ दैत्य था।
उस दुष्टात्मा दानव के पिता राजा रूरू थे। 'देवताओं का बल “वेद” है। वेदों के लुप्त हो जाने पर देवता भी नहीं रहेंगे,इसमें कोई संशय नहीं है। अतः पहले वेदों को ही नष्ट कर देना चाहिये'। यह सोचकर वह दैत्य तपस्या करने के विचार से हिमालय पर्वत पर गया। मन में ब्रह्मा जी का ध्यान करके उसने आसन जमा लिया। वह केवल वायु पीकर रहता था। उसने एक हजार वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की।

चारों वेदों के परम अधिष्ठाता ब्रह्माजी द्वारा दैत्य दुर्गम को वर दान –
उसके तेज से देवताओं और दानवों सहित सम्पूर्ण प्राणी सन्तप्त हो उठे। तब विकसित कमल के सामन सुन्दर मुख की शोभा वाले चतुर्मुख भगवान ब्रह्मा प्रसन्नतापूर्वक हंस पर बेडकर वर देने के लिये दुर्गम के सम्मुख प्रकट हो गये और बोले - 'तुम्हारा कल्याण हो ! तुम्हारे मन में जो वर पाने की इच्छा हो, मांग लो। आज तुम्हारी तपस्या से सन्तुष्ट होकर मैं यहाँ आया हूँ।' ब्रह्माजी के मुख से यह वाणी सुनकर दुर्गम ने कहा - सुरे,र ! मुझे सम्पूर्ण वेद प्रदान करने की कृपा कीजिये। साथ ही मुझे वह बल दीजिये, जिससे मैं देवताओं को परास्त कर सकूँ।
दुर्गम की यह बात सुनकर चारों वेदों के परम अधिष्ठाता ब्रह्माजी 'ऐसा ही हो' कहते हुए सत्यलोक की ओर चले गये। ब्रह्माजी को समस्त वेद विस्मृत हो गये।

दुर्गम के अत्याचार से धर्म के क्षय ने गंभीर सूखे को जन्म दिया –
दुर्गम नामक एक दानव ने प्रचण्ड तपस्या की और चारों वेदों को प्राप्त कर लिया, ऋषियों की सभी शक्तियां दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई तथा यह आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया कि देवताओं को समर्पित समस्त पूजा उसे प्राप्त होनी चाहिये । जिससे कि वह अविनाशी हो जाये । शक्तिशाली दुर्गम ने लोगों पर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया और धर्म के क्षय ने गंभीर सूखे को जन्म दिया और सौ वर्षों तक कोई वर्षा नहीं हुई ।

ऋषि, मुनि और ब्राह्मण लोग भीषण अनिष्टप्रद समय उपस्थित होने पर जगदम्बा की उपासना करने के हिमालय पर्वत पर गये-
इस प्रकार सारे संसार में घोर अनर्थ उत्पन्न करने वाली अत्यन्त भयंकर स्थिति हो गयी। ऋषि, मुनि और ब्राह्मण लोग भीषण अनिष्टप्रद समय उपस्थित होने पर जगदम्बा की उपासना करने के हिमालय पर्वत पर गये, और अपने को सुरक्षित एवं बचाने के लिए हिमालय की कन्दराओं में छिप गए तथा माता देवी को प्रकट करने के लिए कठोर तपस्या की । समाधि, ध्यान और पूजा के द्वारा उन्होंने देवी की स्तुति की। वे निराहार रहते थे। उनका मन एकमात्र भगवती में लगा था। वे बोले - 'सबके भीतर निवास करने वाली देवेश्वरी ! तुम्हारी प्रेरणा के अनुसार ही यह दुष्ट दैत्यसब कुछ करता है। तुम बारम्बार क्या देख रही हो ? तुम जैसा चाहो वैसा ही करने में पूर्ण समर्थ हो। कल्याणी! जगदम्बिके प्रसन्न हो हम तुम्हें प्रणाम करते हैं।''इस प्रकार ब्राह्मणों के प्रार्थना करने पर भगवती पार्वती, जो 'भुवनेश्वरी' एवं महेश्वरी' के नाम से विखयात हैं।,

दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है

माता देवी शाकम्बरी के नाम से जानी गयीं –
ब्रह्मा, विष्णु आदि आदरणीय देवताओं के इस प्रकार स्तवन एवं विविध द्रव्यों के पूजन करने पर भगवती जगदम्बा तुरन्त संतुष्ट हो गयीं। ऋषि, मुनि और ब्राह्मण लोग की समाधि, ध्यान और पूजा के द्वारा उनके संताप के करुण क्रन्दन से विचलित होकर, ईश्वरी- माता देवी-फल, सब्जी, जड़ी-बूटी, अनाज, दाल और पशुओं के खाने योग्य कोमल एवं अनेक रस से सम्पन्न नवीन घास फूस लिए हुए प्रकट हुईं और अपने हाथ से उन्हें खाने के लिये दिये।,शाक का तात्पर्य सब्जी होता है, इस प्रकार माता देवी का नाम उसी दिन से ''शाकम्भरी'' पड गया।

सताक्षी के नाम से पुकारा गया –
जगत्‌ की रक्षा में तत्पर रहने वाली करूण हृदया भगवती अपनी अनन्त आँखों से सहस्रों जलधारायें गिराने लगी। उनके नेत्रों से निकले हुए जल के द्वारा नौ रात तक त्रिलोकी पर महान्‌ वृष्टि होती रही।
वे अनगिनत आँखें भी रखती थीं। इसलिए उन्हें सताक्षी के नाम से पुकारा गया । ऋषियों और लोगों की दुर्दशा को देख कर उनकी अनगिनत आँखों से लगातार नौ दिन एवं रात्रि तक आँसू बहते रहे । यह (आँसू ) एक नदी में परिवर्तित हो गए जिससे सूखे का समापन हो गया ।

शाकम्बरी देवी का दैत्य दुर्गम से युद्ध –
जगत में कोलाहल मच जाने पर दूत के कहने पर दुर्गम नामक स्थान दैत्य स्थिति को समझ गया। उसने अपनी सेना सजायी और अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर वह युद्ध के लिये चल पड़ा। उसके पास एक अक्षोहिणी सेना थी। तदनन्तर देवताओं व महात्माओं को जब असुरों की सेना ने घेर लिया था तब करुणामयी मां ने बचाने के लिए ,देवलोक के चारों ओर एक दीवार खड़ी कर दी और स्वयं घेरे से बाहर आकर युद्ध के लिए डट गई तथा दानवों से संसार को मुक्ति दिलाई।
तदनन्तर देवी और दैत्य-दोनों की लड़ाई ठन गयी। धनुष की प्रचण्ड टंकार से दिशाएँ गूँज उठी। भगवती की माया से प्रेरित शक्तियों ने दानवों की बहुत बड़ी सेना नष्ट कर दी। तब सेनाध्यक्ष दुर्गम स्वयं शक्तियों के सामने उपस्थित होकर उनसे युद्ध करने लगा। संसार के ऋषि एवं लोगों को बचाने के लिये, शाकम्बरी देवी ने दैत्य दुर्गम से युद्ध किया।
अब भगवती जगदम्बा और दुर्गम दैत्य इन दोनों में भीषण युद्ध होने लगा।
माँ शाकम्बरी देवी ने अपने शरीर से दस शक्तियाँ उत्पन्न की थी । जिन्होंने युद्ध में देवी शाकम्बरी की सहायता की।
जगदम्बा के पाँच बाण दुर्गम की छाती में जाकर घुस गये। फिर तो रूधिर वमन करता हुआ वह दैत्य भगवती परमेश्वरी के सामने प्राणहीन होकर गिर पड़ा।
माँ शाकम्बरी देवी ने अंततः अपने भाले से दैत्य दुर्गम को मार डाला ।

वेदों की सभी शक्तियां शाकम्बरी देवी के शरीर में प्रवेश – तब वेदों का ज्ञान और ऋषियों की सभी शक्तियां जो दुर्गम द्वारा शोषित कर ली गई थीं, दानव दुर्गम को मारने से सभी शक्तियां सूर्यों के समान चमकदार सुनहरे प्रकाश में परिवर्तित हो गयीं और शाकम्बरी देवी के शरीर में प्रवेश कर गयीं ।

माता देवी या ईश्वरी का नाम दुर्गा हुआ –
देवी ने प्रसन्नतापूर्वक उस राक्षस से वेदों को त्राण दिलाकर देवताओं को सौंप दिया। वे बोलीं कि मेरे इस उत्तम महात्म्य का निरन्तर पाठ करना चाहिए। मैं उससे प्रसन्न होकर सदैव तुम्हारे समस्त संकट दूर करती रहूँगी।
शाकम्बरी देवी ने सभी वेद और शक्तियां देवताओं को वापस कर दिया। तब माता देवी या ईश्वरी का नाम “दुर्गा” हुआ क्योंकि उन्होंने दानव दुर्गम को मारा था ।
शाकम्बरी नवरात्रि का उत्सव –
पौष शुक्ल अष्टमी से आरम्भ होकर पौष की पूर्णिमा को समाप्त होता है ।
यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में मनाया जाता है । भारत के इन राज्यों के मन्दिरों में विशाल आयोजन सर्वोच्च माता की आराधना हेतु होता है जो अपने बच्चों को भोजन उपलब्ध कराती है । सब देखते हुए माता (दुर्गा) जानतीं हैं कि क्या और कब उनके बच्चों की आवश्यकता है । जब उनके बच्चे रोते हैं, वे अपने अनाज, दाल,सब्जी, एवं फलों के उपहारों सहित दौड़ी चली आतीं हैं। यह उत्सव प्रक्रति माता तथा सर्वोच्च माता की कृतज्ञता का एक आयोजन होता है ।

तीसरा उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है

देवगण बोले- परिवर्तनशील जगत की एकमात्र कारण भगवती परमेश्वरी! शाकम्भरी! शतलोचने! तुम्ळें शतशः नमस्कार है। सम्पूर्ण उपनिषदों से प्रशंसित तथा दुर्गम नामक दैत्य की संहारिणी एवं पंचकोश में रहने वाली कल्याण-स्वरूपिणी भगवती महेश्वर! तुम्हें नमस्कार है।
हरी श्री शाकम्भरी अम्बा जी की आरती कीजो ।

ऐसा अदभुत रुप हृदय धर लीजो,
शताक्षी दयालु की आरती कीजो ।।

तुम परिपूर्ण आदि भावानी माँ,
सब घट तुम आप बखानी माँ ।।

शाकम्भर अम्बाजी की आरती कीजो
तुम्ही हो शाकम्भर, तुम ही हो शताक्षी माँ
शिवमूर्ति माया प्रकाशी माँ, श्री शाकम्भर
नित जो नर नारी अम्बे आरती गावे माँ
इच्छा पूरण कीजो, शाकम्भर दर्शन पावे माँ,
श्री शाकम्भर ...

जो नर आरती पढे पढावे माँ
जो नर आरती सुने सुनावे माँ
बसे बैकुण्ड शाकम्भर दर्शन पावे, श्री शाकम्भर....
वर्ष भर में चार नवरात्रि मानी गई है, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में आने वाली चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है।

पौष माह की शुक्ल पक्ष अष्टमी से पौष पूर्णिमा का समय शाकम्भरी नवरात्री कहलाता है।
प्रत्येक वर्ष में दो मुख्य नवरात्री, चैत्र व शारदीय नवरात्री होते हैं।
जो चैत्र व आश्विन मास की प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं ।
इसके अलावा माघ व आषाढ़ मास मे दो गुप्त नवरात्री भी प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं।
परन्तु शाकम्भरी नवरात्रि को अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाते हैं।
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए यह नवरात्रि खास माना जाता है।
तंत्र-मंत्र के साधकों को अपनी सिद्धि के लिए खास माने जाने वाली शाकंभरी नवरात्रि मनाई जाती है।
लड़कियों का विवाह जल्दी कराती है यह देवी स्तुति
देवी दुर्गा की स्तुति केवल शक्ति के लिए नहीं की जाती है। मां दुर्गा पार्वती के रूप में लड़कियों को अच्छा वर भी दिलाती है और विवाह में आ रही बाधा को दूर भी करती है। कहा जाता है कि सीता और रुक्मणि दोनों ने पार्वती का पूजन किया था और इससे ही उन्हें राम और कृष्ण जैसे पति मिले। तुलसीदास ने रामचरितमानस में इसका उल्लेख भी किया है। सीता ने पार्वती का पूजन किया था, स्तुति की थी। इसके बाद ही उन्हें राम के दर्शन हुए थे। वही स्तुति रामचरितमानस में मिलती है। कई विद्वानों ने इस स्तुति को सिद्ध माना है। अगर कुंवारी लड़की रोजाना नियम से पार्वती पूजन कर इस स्तुति का पाठ करे तो उसे भी मनचाहा वर मिलता है।

स्तुति
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तब आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना॥
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें॥
अर्थ - हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमालय की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, जय हो, हे महादेवजी के मुख रूपी चंद्रमा की ओर टकटकी लगाकर और छ: मुखवाले स्वामी कार्तिकेयजी की माता! हे जगजननी! हे बिजली की-सी कांतियुत शरीर वाली! आपकी जय हो। आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करने वाली हैं। विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंत्र रूप से विहार करने वाली हैं। हे भक्तों को मुंहमांगा वर देने वाली! हे त्रिपुर के शत्रु शिवजी की प्रिय पत्नी! आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं। हे देवी! आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं। मेरे मनोरथ को आप भली भांति जानती हैं योंकि आप सदा सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करती हैं।

माँ शाकम्भरी देवी मन्दिर
ऐसी मान्यता है कि माँ शाकम्भरी मानव के कल्याण के लिये धरती पर आयी थी।
मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठों की, नौ देवियों में से एक हैं मां शाकंभरी देवी।
मां शाकंभरी धन-धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना से घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।

देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं।
पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।
दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और
तीसरा स्थान उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलोमीटर की दूर पर स्थित है।
1-पहला प्रमुख श्री शाकम्भरी माता मन्दिर, गाँव सकराय सीकर (राजस्थान)

सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां

पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।
कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है।
श्री शाकम्भरी माता गाँव सकराय यह आस्था केन्द्र सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावटी प्रदेश के सीकर जिले में यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर सीकर से 56 किमी. दूर अरावली की हरी वादीयों में बसा है। झुंझनूँ जिले के उदयपुरवाटी के समीप है। यह मंदिर उदयपुरवाटी गाँव से 16 किमी. पर है। यहाँ के आम्रकुंज, स्वच्छ जल का झरना आने वाले व्यक्ति का मन मोहित करते हैं। इस शक्तिपीठ पर आरंभ से ही नाथ संप्रदाय वर्चस्व रहा है जो आज तक भी है। यहाँ देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। यह मंदिर खंडेलवाल वैश्यों की कुल देवी के मंदिर के रूप में विख्यात है। इसमें लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर के मंडप आदि बनाने में धूसर और धर्कट के खंडेलवाल वैश्यों सामूहिक रूप से धन इकट्ठा किया था। विक्रम संवत 749 के एक शिलालेख प्रथम छंद में गणपति,द्वितीय छंद में नृत्यरत चंद्रिका एवं तृतीय छंद में धनदाता कुबेर की भावपूर्ण स्तुति लिखी गई है।

इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था। भारत के आठशक्ति पीठों में से यह एक है। यह भव्य मंदिर विभिन्न प्रकार के वृक्षों से घिरा है तथा कई प्रकार के औषधि वृक्ष भी इस शांत मालकेतु घाटी (अरावली पर्वत) में पाये जाते हैं। शंकर गंगा नदी बारिश के दिनों में इस मंदिर के पास से बहती है। भक्तों को पवित्र स्नान करने हेतु कई घाट बनवाये गये हैं। इस मंदिर के आसपास अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में जटा शंकर मंदिर तथा श्री आत्म मुनि आश्रम शामिल है। भक्तगण सालभर इस मंदिर में आते रहते हैं, लेकिन हिंदु कॅलेंड़र के अनुसार महिने के आठवे, नौवें तथा दसवें दिन देवी भगवती की विशेष प्रार्थना के होते हैं। नवरात्रों के दौरान नौ दिन का उत्सव यहाँ होता है।
इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत, वनपर्व के तीर्थयात्रा प्रसंग में इस श्लोक के मध्यान से किया गया है। श्लोक:
"ततो गच्छेत् राजेन्द्र देव्याः स्थानं सुदुर्लभम,
शाकम्भरीति विख्याता त्रिषु लोकेषु विश्रुता।"

उपाय: धन धान्य कि पूर्ती हेतु देवी शाकंभरी कि पंचो-उपचार पूजन करने के बाद देवी के चित्र पर लौकी का भोग लगाएं।


मंत्र:--
 ततोऽहमखिलंलोकमात्मदेहसमुद्भवै:।
भरिष्यामिसुरा: शाकैरावृष्टे:प्राणाधारकै:।
(शाकम्भरी) सकरायमाता मंदिर के शिलालेख
शाकंभरी देवी के नाम का उल्लेख महाभारत, वन पर्व के तीर्थयात्रा-प्रसंग में है -
’ततो गच्छेत राजेन्द्र देव्या: स्थानं सुदुर्लभम,
शाकम्भरीति विख्याता त्रिषु लोकेषु विश्रुता’ वन.८४,१३.

इसके पश्चात शाकंभरी देवी के नाम का कारण इस प्रकार बताया गया है -
’दिव्यं वर्षसहस्रं हि शाकेन किल सुव्रता,
आहारं सकृत्वती मसि मासि नराधिप,
ऋषयोअभ्यागता स्तत्र देव्या भक्त्या तपोधना:,
आतिथ्यं च कृतं तेषा शाकेन किल भारत तत:
शाकम्भरीत्येवनाम तस्या: प्रतिष्ठितम’ वन. ८४,१४-१५-१६

नोट - यह विवरण मुख्यत: रतन लाल मिश्र की पुस्तक शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, १९९८, पृ.३११ से ३१९ से अध्ययन हेतु लिया गया है.
अरावली की एक उपत्यका के रम्य प्राकृतिक परिवेश में स्थित शाकम्भरी (सकरायमाता) के मंदिर में तीन प्राचीन शिलालेख उपलब्ध हैं.

प्रथम शिलालेख मंदिर के एक द्वार पर लगा है जो सबसे प्राचीन है, यह एपिग्राफिया इंडिका (Epigraphia Indica) के वोल्यूम सताईस पृष्ठ २७-३३ पर प्रकाशित हुआ है। इसका समय विक्रम संवत ६९९ माना गया है। इस पर ऐसियाटिक सोसाइटी वेस्टर्न सर्किल की १९३४ की रिपोर्ट में भी विचार हो चुका है। डॉ. भंडारकर इसकी तिथि ८७९ वि. तथा श्री ओझा ७४९ वि. मानते हैं ,रतन लाल मिश्र लिखते हैं कि, खंडेला में जो शाकम्भरी से पास ही है वोद्द के पुत्र आदित्य नाग ने अर्द्धनारीश्वर का मंदिर बनाया था।

सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां

इसकी तिथि डॉ. डी.सी. सरकार ने ८६४ वि. मानी थी. आदित्य नाग ने खंडेला में अपना मंदिर बनाया था और सकराय में शाकम्भरी मंदिर के मंडप निर्माण के लिए अन्य दस गोष्ठियों के साथ सम्मिलित हुआ।यह मान्यता साधार लगती है,इस आधार पर डॉ. डी.सी. सरकार द्वारा सुझाई गयी तिथि वि. ८७९ स्वीकार करने योग्य है।

शाकम्भरी देवी के स्थान पर लगे संवत ८७९ के शिलालेख से ज्ञात होता है की ११ वणिकों ने एक संघ बनाकर एक अतीव सुन्दर मंडप शंकरादेवी के मंदिर के आगे बनाया. इन लोगों के नाम मदन (धूसर वंश) गर्ग, गनादित्य (धर्कट वंश) देवल, शंकर, आदित्यनाग आदि. सकराय प्रथम शिलालेख का


मूल पाठ

१. ॐ रनदरदनदारनद्रुतसुमेरुरेनुद्भुतम सुगन्धि
मदिरामद-प्रभुदतालिझंकारितम (तम्) अनेक रनदुंदुभिध्वनि विभिन्न गंडस्थलं
महागनपतेर्मुखम् दिशतु भूरि भद्रानि व: (१) नृत्यनत्यास सांगहारम चरनभार परिखोभिता
क्षमातलाया: प्रभष्टेन्दु प्रभायाम निशि विसृत नखोद्योत भिन्नान्धकारा ये लीलोद्वोलिताग्रां
विदधति वितताम्भोज पूजाइव शासते हस्ताम् संपदा वो ददातु विदलित द्वेषिनश्चंडिकाया:
(२) मधुमद्जनु दृष्टि, स्पष्टनीलोत्पलाभों मुकुटमणि मयूखै: रंजति: पीतवास: जलधर:
इव विद्युच्छक्र चापानुविद्धो भवतु धनदनामों बुद्धिदां व: सुयक्ष:।
(३) आसीद धर्म परायनेति महती प्रोद्दाम कीत्युज्जवले । वंशे धूसर संज्ञके गुनवतो ख्यातो यशोवर्द्धन: यस्या स्ताखिल दोष्ण उन्नत भुज: पुत्रो:भवत संत्यवाग्। राम: श्रेष्टिवरो वभूव च यतो श्रेष्टि सुतो मंडन: ।
(४) आसीच्च मालिनी प्रकाश यशसि श्री मत्युदारे धरक्कट नाम्नी प्रतिदिनं शक्रर्धि
विस्पर्धिनी। उच्चै मोदित मादरन् निजकुलं येनोदयं गच्छता। श्रेष्ठि: मंडन नामक:
संभवच्छ्रेष्ठि यतो मद्वन: ।।
५) तस्यापि अभूत सुत: श्रेष्ठि गर्गो धर्म परयण:. कुलीन:
शील संपन्न: सततं प्रियदर्शन: .,
(६) श्रेष्ठिमंड
नाख्य: प्रभूतम प्राप्नोत्यर्थम् गर्गा नामा च लक्षमीम् । यो श्रेष्ठित्वं सर्वसत्वानुकंपा
सम्यक् कुर्वाणों नितवन्तौ समाप्तिम् ।।
(७) तथा भट्टीयक श्चासीद् वनिग् धर्कट
वंशज:। सुनुस्तस्यापि अभूत धीमान् वर्द्धन: ख्यात सद्गुण:।
(८) तस्य पुत्रौ महात्मानौ
सत्य शौचार्जवान्वितौ वभुवतु गर्गना
दित्य देवलाख्यावनन्दितौ।।
(९) तथा वनिकच्छिवश्चासीत तत् पुत्रों जितेन्द्रिय:।
शंकरों विष्णु वाकस्य तथासीत् तनय: शुचि:।।
(१०) आदित्यवर्द्धन सुतो मंडुवाको:
भवत सुधि:। वोद्दस्य आदित्य नामाख्य: पुत्रासीद् महदुयुति:
(११) भद्राख्यो नद्धकस्या:भूत्
पुत्रों मतिमताम्बर: । तथा द्दो
७. (तन) संज्ञश्च ज्यूलस्या: भावत सूत: ..
(१२) शंकर: सौन्धराख्यस्य
सुनुरासीदकल्मष: । शुश्रुषानन्य मनसा पित्रो येनासकृत कृत: ।।
(१३) तैर्यम् गोष्टिकै:
भूत्वा सुरानामंडपोत्तम: कारित: शंकरादेव्या: पुरत: पुण्यवृद्धये.
(१४) संवत ६९९
द्विराषाढ सुदि
सकराय दूसरा शिलालेख का (Sakrai Inscription2)
दूसरा शिलालेख मंदिर के पार्श्व भाग पर लगा है.
श्री ओझा इसे १०५६ वि.स. का मानते हैं।
मूल पाठ
१. (१०५) ६ श्रावण वदि। श्री शंकरादेव्याया मह (:)
२. राज श्री दुल्लह राजन्य राज्ये दुसाध्य
३. (शिव) हरिसुत तस्यैव भातृव्यज श्री
४. (सिद्धरा)ज ताभ्यां मंडपं कारापितं। कर्म्मका
५. (र आ) हिल सिंहटसुत: देव्यापादंक् नित्य प्र
६. (णमति) (बहु) रूपसुत: देवरूपेन


श्री शाकम्भरी माता मन्दिर, गाँव सकराय सीकर (राजस्थान)

भावार्थ संवत १०५६ श्रावण बदी १ को शंकरादेवी का मंडप महाराज श्री दुल्लहराज के राज्य में दुसाध्य शिवहारी के पुत्र एवं उसके भतीजे सिद्धराज ने बनाया। कर्मकार का नाम आहिल था। जो सिंहट का पुत्र था, जो देवी के चरणों में नित्य प्रणाम करता है। प्रशस्ति खोदी बहुरूप के पुत्र देवरूप ने।

सकराय तीसरा शिलालेख का वि.स.१०५५

शाकम्भरी देवी के स्थान पर लगे संवत ८७९ के शिलालेख

तीसरा शिलालेख वि.स.१०५५ का है।

इसका उल्लेख रायल ऐसियाटिक सोसाइटी की रिपोर्ट के साथ ही एपिग्राफिया इंडिका (Epigraphia Indica) वो. ३८,भाग ७, पृ. ३२३,२४२ में भी इसका संपादन हुआ है। इस शिलालेख में प्राचीन प्रथा के अनुसार प्रथम दो अंक छोड़ दिए हैं और केवल ५५ का अंकन है। संपादक ने प्रथम दो अंकों को १० मानकर शिलालेख की तिथि १०५५ बताई है। इस सम्बन्ध में डॉ. दशरथ शर्मा मानते हैं कि विग्रहराज का उत्तराधिकारी दुर्लाभराज द्वितीय सं. १०५३ में राज्य कर रहा था इसलिए सकराय शिलालेख में उल्लिखित विग्रहराज की पहचान विग्रहराज तृतीय से करनी चाहिए ओर विलुप्त अंकों को १० की अपेक्षा ११ माना जाना चाहिए।
इस के अतिरिक्त एक और तथ्य भी प्रासांगिक प्रतीत होता है जो शिलालेख के काल निर्धारण में सहायक होगा,विग्रहराज की मृत्यु का ठीक समय हमें ज्ञात नहीं है। विग्रहराज द्वितीय के समय का हर्ष-शिलालेख १०३० वि. का ज्ञात है। दुर्लाभराज १०५५ में गद्दी पर बैठ गया था। उस समय तक विग्रहराज की मृत्यु हो चुकी थी। नर्मदा विग्रहराज की पुत्री थी जिसका विवाह वत्सराज के साथ हुआ था। उसके गोविन्दराज नामक पुत्र हुआ था, उसकी पत्नी देयिका थी,गोविन्दराज-देयिका की पुत्री देयिनी थी जिसने शाकम्भरी के मंदिर का जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण करवाया था।


इस प्रकार विग्रहराज, गोविन्दराज और देयिनी ये तीन पीढियां व्यतीत हो चुकी थीं। देयिनी ने संभवत: अपनी वृद्धावस्था में माता-पिता तथा स्वयं की पुन्यवृद्धि के लिए पितृग्रह में रहते हुए यह मंदिर बनवाया था (पितृमातृभ्याम आत्मन: पुण्य वृद्धये) । इस प्रकार विग्रहराज से लेकर देयिनी द्वारा मंदिर निर्माण के काल तक प्राय: १०० वर्ष का समय व्यतीत हो चुका होगा। इस आधार पर शिलालेख की तिथि वि . १०५५ नहीं होकर वि. ११५५ मानना संगत प्रतीत होती है. [
शाकंभरी देवी के १०५५ वि. (११५५ वि.) के शिला लेख से ज्ञात होता है कि देवी का मंदिर जो ईंटों का बना था कालांतर में टूट फूट गया था। देयिनी ने इसका जीर्णोद्धार करवाया और द्रोणक नामक गाँव अर्पित किया. (शाकंभरी शिलालेख श्लोक-१६)
मूल पाठ
जयतिमुनि मनुजगीत: स(रभस) म् निरद्दारितारि राया (यौ) या: (य:) (१)
कृन् (न) द्... रु...नूपुर-मुखर: स (लसतम्म) लम् छन्न: प...
२. ...क्षमैरिव स्फ़ुरद विकटपन्नगा मलयपाद्श्रीरिव। सुरत्नकटको ज्व(ज्ज्व)
लो सुरगिरेश तति सन्निभा प्र...मृदाश्र (य) (२)
३. ...हितानीक: शक्तिर्मान विवुधारित हृत श्रीमद् विग्रहराजो भूच्चाहमानो गुहोपम:(३)
४. ....सद्धतवन्शे प्रभव: सद्वागुरा तस्यु नर्म्मदा (४) श्री बच्छराज
नृपते: प्रहतारितस्य सामन्त चक्राकरराजहंसी. साजीजनद् विजित शत्रु जनोर्जितम् श्री गोविन्दराज (राज)...
५.राजालोकम (कम्)। (५) हेलादलद विकट कुंभ कवाट मुक्त:
मुक्ताफलोच्चालितविस्फ़ुरितअंतरिक्षम्। येन क्वनन् मुदुजाल प्रचलालि मालामालोडितम् श (स)
६. लीलान (लान्)।। (६) देवं कर्मरतानित्यम् विनतानाम वरप्रदा: राजनीश्रीदेयिका,
कान्ता तस्याभूद् देवतोपमा।। (७) को दानेनपूरित: प्रतिदिशम् कस्याश्रयोनोवत: को ।
७. निवृतिम कस्याच्छ्रय नोद्धता। इत्येवं त्रिदेशेश्वरस्य भवने जेगीयते यश्शिचरम्
चित्रम् चा(रण) चक्रकै: विरचितम् चन्द्रावदातंयश: ।। (८) अस्ति उन्नते: सुरगृहै:(ना)
८. ना विधैद्विज वनिगवर वेश्मजालै:। सत श्रेष्ठि संसत महाजन सन्निवेशम श्री
पूर्णतल्लकपुरम् प्रथितम पृथ्वीव्याम (व्याम्)। (९) श्रेष्ठि जाज्जक जयमात्रयो: (र) र्पितम्
९. इदम् देवद्रोन्या-रम्य प्रदीप पंर्यतं लता व्यालोल पल्लवम्। कोकिला कुल
संघुष्ठं, मल्ली माला निषेविताम्।। (१०) पवनापात संभ्रान्त किन्नरा:
१०. तम् (तम) शिखालि (न्दी) केका कुलितम् हरि हारीत नादितम (तम्)। (११)
वृहदाद्रोण्याश्रितम् श्रीमत् सिद्धगधर्व संस्तुतम्। शोधम् श्री शंकरादेव्या: पुरा केनापि
कारितम (तम्)। (१२) विदीर्ण कूटशिखर (रम्)
११. तितेष्ठकम् . देव्यास्तद् मन्दिरं जातं कालयोगाच्चला चलम् (लम्) तयोंन्नियोगे
देयिन्या: स्थाने (घोसायी) तदायतनम् भूय: कारितम् रुचिमत्तरम (रम्) ।। (१४) जीवितम का...
१२. संपदातितरलास्तरंगवत् यौवनानिसुचिरंनदेहिनाम् । इति एत्य जागतोहि अनित्याम् ।। (१५)
१३. यस्याश्च पितृ मातृभ्याम् आत्मन: पुण्यवृद्धये....
ग्रामो द्रोनक संज्ञकश्च न्ययात्रेदापित:।। (१६) यावत् क्षितीह क्षितिधर: क्षणदाकरश्च
यावत् क्षिनोति तिमिरम् रवि अंशुजालै:-वृंदेनृतमतामगनमुखर नृपुर राव रम्यम्।। (१७)
१४. ....द् मकरन्दविसर्पि विन्दुमत् भ्रमद्भ्रमर संज्ञ विवृद्धराव काले
विलोलपा... रूम.... देवालयम्.... हितरुचिमद् विचित्रम्।। (१८)
१५. शकरसुनुना पूर्वा विरचिता हीऐषा। वराहेनाल्प मेधसा उत्कीर्णा सूत्रधार
सिलागनेन वोद्दक पुत्रेन संसंवत्सर ५५ माघ सुदि.
=======================================
3>-दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है-

जिले के सांभर कस्बे में अवस्थित

शाकम्भरी देवी अशाकम्भरी देवी का प्राचीन शक्तिपीठ जयपुर जिले के सांभर कस्बे में अवस्थित है। शाकम्भरी माता सांभर की अधिष्ठात्रीदेवी है और इस शक्तिपीठ से ही इस कस्बे ने अपना यह नाम पाया। सांभर पर चौहान राजवंश का शताब्दियों तक असधिपत्य रहा। 12वि शती के अन्तिम चरण में सांभर के प्रदेश में चौहानों का राज्य था। -
यहाँ सांभर झील शाकंभरी देवी के नाम पर प्रसिद्ध है।
महाकाव्य महाभारत के अनुसार यह क्षेत्र असुर राज वृषपर्व के साम्राज्य का एक भाग था और यहाँ पर असुरों के कुलगुरु शुक्राचार्य निवास करते थे।
इसी स्थान पर शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह नरेश ययाति के साथ सम्पन्न हुआ था। “देवयानी” को समर्पित एक मंदिर झील के पास स्थित है। यहाँ “शाकम्भरी देवी” को समर्पित एक मंदिर भी उपस्थित है।

एक अन्य हिंदू मान्यता के अनुसार, शाकम्भरी देवी जो कि चौहान राजपूतों की रक्षक देवी हैं, सांभर प्रदेश के लोग इस वन संपदा को लेकर होने वाले संभावित झगड़ों के लेकर चिंतित हो गये थे। देवी ने यहां स्थित इस वन को बहुमूल्य धातुओं के एक मैदान में परिवर्तित कर दिया था। और इसे एक वरदान के स्थान पर श्राप समझने लगे। लोगों ने देवी से अपना वरदान वापस लेने की प्रार्थना की तो देवी ने सारी चांदी को नमक में परिवर्तित कर दिया।

सांभर, पौराणिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक और धार्मिक महत्तव का एक सांस्कृतिक पहचान रही है शाकम्भरी देवी के मंदिर की अतिक्ति पौराणिक राजा ययाति की दोनों रानियों देपयानी और शर्मिष्ठा के नाम पर एक विशाल सरोवर व कुण्ड अद्यावधि वहां विद्यमान है जो इस क्षेत्र के प्रमुख तीर्थस्थलों के रूप में विख्यात है। वर्तमान में देवनानी के नाम से प्रसिद्ध इस तीर्थ का लोक में बड़ा माहात्म्य है जिसकी सूचक यह कहावत है “देवदानी” सब तीर्थो की नानी।

चौहान काल में सांभर और उसका निकटवर्ती क्षेत्र सपादलक्ष (सवा लाख की जनसंख्या सवा लाख गांवों या सवा लाख की राजस्व वसूली क्षेत्र) कहलाता था।

ज्ञात इतिहास के अनुसार चौहान वंश शासक वासुदेव ने सातवीं शताब्दी ईं में सांभर झील और सांभर नगर की स्थापना शाकम्भरी देवी के मंदिर के पास में की। सांभर सातवीं शताब्दी ई. तक अर्थात्‌ वासुदेवी के राज्यकरल से १११५ ई. उसके वंशज अजयराज द्वारा अजयमेरू दुर्ग या अजमेर की स्थापना कर अधिक सुरक्षित समझकर वहां राजधानी स्थानांतरित करने तक शाकम्भरी इस यशस्वी चौहान राजवंश की राजधानी रही। सांभर की अधिष्ठात्री और चौहान राजवंश की कुलदेवी शाकम्भरी माता का प्रसिद्ध मंदिर सांभर से लगभग 15 कि.मी. दूर अवस्थित है।

सांभर के पास जिस पर्वतीय स्थान में शाकम्भरी देवी का मंदिर है वह स्थान कुछ वर्षों पहले तक जंगल की तरह था और घाटी देवी की बनी कहलाती थी।
समस्त भारत में शाकम्भरी देवी का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर यही है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि देवी की प्रतिमा भूमि से स्वतः प्रकट हुई थी। शाकम्भरी देवी की पीठ के रूप में सांभर की प्राचीनता महाभारत काल तक चली जाती है। महाभारत (वन पर्व), शिव पुराण (उमा संहिता) मार्कण्डेय पुराण आदि पौराणिक ग्रन्थों में शाकम्भरी की अवतार कथाओं में शत वार्षिकी अनावृष्टि चिन्तातुर ऋषियोंपर देवी का अनुग्रह शकादि प्रसाद दान द्वारा धरती के भरण पोषण की कथायें उल्लेखनीय है।

वैष्णव पुराण में शाकम्भरी देवी के तीनों रूपों में शताक्षी, शाकम्भरी देवी का शताब्दियों से लोक में बहुत माहात्म्य है। सांभर और उसके निकटवर्ती अंचल में तो उनकी मान्यता है ही साथ ही दूरस्थ प्रदेशों से भी लोग देवी से इच्छित मनोकमना, पूरी होने का आशीर्वाद लेने तथा सुख-समृद्धि की कामना लिए देवी के दर्शन हेतु वहां आते हैं। प्रतिवर्ष भादवा सुदी अष्टमी को शाकम्भरी माता का मेला भरता है। इस अवसर पर सैंकड़ों कह संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ वहां आते हैं। चैत्र तथा आसोज के नवरात्रों में यहां विशेष चहल पहल रहती है।

शाकम्भरी देवी के मंदिर के समीप उसी पहाड़ी पर मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा सन्‌ १६२७ में एक गुम्बज (छतरी) व पानी के टांके या कुण्ड का निर्माण कराया था, जो अद्यावधि वहां विद्यमान है।आलौकिक शक्ति और माहात्म्य के कारण सैंकड़ों वर्षो से लोक आस्था का केन्द्र है।
==============================================================
4> तीसरा मां शाकंभरी का मंदिर स्थान बेहट, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश शिवालिक पर्वतमाला के घने जंगल में –

मां शाकंभरी का मंदिर स्थान बेहट, सहारनपुर, उत्तरप्रदेश

उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस सिद्धपीठ में बने माता के पावन भवन में माता शाकंभरी देवी, भीमा देवी, भ्रामरी देवी व शताक्षी देवी की नौ देवियों में से, एक हैं मां शाकंभरी देवी। कल कल छल छल बहती नदी की जल धारा ऊंचे पहाड़ और जंगलों के बीच विराजती हैं माता शाकंभरी। कहा जाता है शाकंभरी देवी लोगों को धन धान्य का आशीर्वाद देती हैं। इनकी अराधना करने वालों का घर हमेशा शाक यानी अन्न के भंडार से भरा रहता है।
कैसे पहुंचे-

आप देश के किसी भी कोने से सहरानपुर रेल या बस द्वारा पहुंच सकते हैं। सहारनपुर में बेहट अड्डे से शाकंभरी देवी के लिए बसें हर थोड़ी देर पर मिलती हैं। 42 किलोमीटर का रास्ता तकरीबन डेढ घंटे का है। शाकंभरी देवी के बस स्टाप से मंदिर के लिए एक किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। मां का मंदिर शिवालिक पर्वतमाला के घने जंगल में नदी के किनारे है। मंदिर तक पहुंचने के लिए शाकंभरी नदी से होकर रास्ता जाता है। थोड़ा रास्ता जंगल से होकर भी है। पथरीली राहों के साथ ही बरसात के दिनों में नदी में पानी भी रहता है। पहाड़ों पर तेज बारिश होने पर नदी में पानी बढ़ जाता है। तब मंदिर जाना मुश्किल है। इसलिए बरसात में दर्शन करने वालों को थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए। माता शाकंभरी के मंदिर के पास प्रसाद की दुकानें और खाने पीने से स्टाल है। मंदिर पास रहने के लिए आश्रम भी है। अगर मंदिर पहुंचने में शाम हो जाए और लौटना मुश्किल हो तो वहीं रूका जा सकता है। मंदिर के पास एक संस्कृत स्कूल और जिला प्रशासन का बनवाया गया रैन बसेरा भी है। शाम को 5.45 बजे के बाद माता शाकंभरी से वापस आने के लिए बसें नहीं मिलतीं। ऐसी हालत में आपको मंदिर के पास ही रूकना पडेगा।
बेहट शाकंभरी देवी का इतिहास

कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर1

कहा जाता है कि यहां सती शीश गिरा था। शाकंभरी देवी के मंदिर में माता शाकंभरी के दाईं ओर भीमा और भ्रामरी और बाईं और शीताक्षी देवी प्रतितिष्ठितहै। भारत की शिवालिक पर्वत श्रेणी में माता श्री शाकंभरी देवी का प्रख्यात तीर्थस्थल है। दुर्गा पुराण में वर्णित 51 शक्तिपीठों में से एक शाकंभरी सिद्धपीठ जिले के शिवालिक वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है। यहां की पहाड़ियों पर पंच महादेव व भगवान विष्णु के प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं। इस पावन तीर्थ के आसपास गौतम ऋषि की गुफा, बाण गंगा व प्रेतसीला आदि पवित्र स्थल स्थापित हैं। यहां वर्ष में तीन मेले लगते हैं, जिसमें शारदीय नवरात्र मेला अहम है।शिवालिक घाटी में माता शाकंभरी आदि शक्ति के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह में माता शाकंभरी, भीमा, भ्रांबरी व शताक्षी देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि सिद्धपीठ पर शीश नवाने वाले भक्त सर्व सुख संपन्न हो जाते हैं। यह भी मान्यता है कि मां भगवती सूक्ष्म शरीर में इसी स्थान पर वास करती हैं। जब भक्तगण श्रद्धा पूर्व मां की आराधना करते हैं तो करुणामयी मां शाकंभरी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भक्तों के कष्ट हरती हैं।
भूरादेव मंदिर –
देवताओं ने माता से वेदों की प्राप्ति की, ताकि सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चल सके। अंबे भवानी की जय-जयकार सुनकर मां का एक परम भक्त भूरादेव भी अपने पांच साथियों चंगल, मंगल, रोड़ा, झोड़ा व मानसिंह सहित वहां आ पहुंचा। उसने भी माता की अराधना गाई। अब मां ने देवताओं से पूछा कि वे कैसे उनका कल्याण करें ! इस प्रकार मां के नेतृत्व में देवताओं ने फिर से राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। युद्ध भूमि में भूरादेव और उसके साथियों ने दानवों में खलबली मचा दी। इस बीच दानवों के सेनापति शुम्भ निशुम्भ का भी संहार हो गया। ऐसा होने पर रक्तबीज नामक दैत्य ने मारकाट मचाते हुए भूरादेव व कई देवताओं का वध कर दिया। रक्तबीज के रक्त की जितनी बंूदें धरती पर गिरतीं उतने ही और राक्षस प्रकट हो जाते थे। तब मां ने महाकाली का रूप धर कर घोर गर्जना द्वारा युद्ध भूमि में कंपन उत्पन्न कर दिया। डर के मारे असुर भागने लगे। मां काली ने रक्तबीज को पकड़ कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके रक्त को धरती पर गिरने से पूर्व ही मां ने चूस लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हो गया। जनश्रुति यह है कि, अब शेर पर सवार होकर मां युध्द भूमि का निरीक्षण करने लगीं। तभी मां को भूरादेव का शव दिखाई दिया। मां ने संजीवनी विद्या के प्रयोग से उसे जीवित कर दिया तथा उसकी वीरता व भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन हेतु आएंगे वे पहले भूरादेव के दर्शन करेंगे। तभी उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी। मेरे दर्शन से पूर्व जो भक्त भूरादेव के दर्शन नहीं करेगा,उसकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाएगी।
इस प्रकार देवताओं को अभयदान देकर मां शाकुम्भरी नाम से यहां स्थापित हो गईं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आसपास के कई प्रदेशों के निवासियों में माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। परिवार के हर शुभ कार्य के समय यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। लोग धन धान्य व अन्य चढ़ावे लेकर यहां मनौतियां मांगने आते हैं। उनका अटूट विश्वास है कि माता उनके परिवार को भरपूर प्यार व खुशहाली प्रदान करेंगी। हर मास की अष्टमी व चौदस को श्रद्धालु यहां आते हैं। स्थान-स्थान पर भोजन बनाकर माता के भंडारे लगाए जाते हैं। माता के मंदिर के इर्द-गिर्द कई अन्य मंदिर भी हैं। मुख्य मंदिर से एक किमी पहले भूरादेव मंदिर है, जहां श्रद्धालु प्रथम पूजा करते हैं। मुख्य मंदिर के निकट वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध मैदान है। इसके बारे में मान्यता है कि माता शक्ति ने यहां महासुर दुर्गम सहित कई दैत्यों का वध किया था, तभी मां जगद्जननी दुर्गा कहलाई।
सिद्धपीठ परिक्षेत्र में पहाडि़यों पर एक ओर छिन्नमस्ता देवी व कुछ फर्लाग दूर माता रक्तिदंतिका देवी के भव्य मंदिर हैं। इस पंचकोसी क्षेत्र में पांच स्वयं भू: शिवलिंग हैं, जिसके दर्शन मात्र से ही चारों धाम की यात्रा का पुण्य प्राप्त होने की मान्यता है।
इतिहास में भी रहा बेहट शाकंभरी का महत्व
सिद्धपीठ धार्मिक ही नहीं एतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। चंद्रगुप्त व चाणक्य भी सेना के गठन के लिए यहां आए थे। इस सिद्धपीठ की तमाम व्यवस्थाएं जसमोर रियासत घराना करता है। इस घराना का संबंध कलिंग राज्य से बताया जाता है। इसके अनुसार माता शाकंभरी उनकी कुलदेवी है। मंदिर की व्यवस्था पहले राणा इंद्रसिंह व उसके बाद उनके पुत्र राणा कुलवीर सिंह तथा उनके देहांत के बाद उनकी पत्नी धर्मपत्नी रानी देवलता व पुत्र कुंवर आदित्य प्रताप राणा, कुंवर सानिध्य प्रताप राणा व कुंवर आतुल्य प्रताप राणा संभाल रहे हैं।
आस्था को संजोए बेहट, शंकराचार्य आश्रम -
सिद्धपीठ परिक्षेत्र में द्वारिका एवं ज्योर्ति पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज का आश्रम यहां शोभा बढ़ाता है। आश्रम में श्रद्धालुओं के ठहरने व भंडारे आदि की सुविधा के लिए करीब 150 कमरे बने हैं। आश्रम व्यवस्थापक संत संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत भैरवतंत्राचार्य श्री सहजानंद जी ब्रह्मचारी श्रद्धालुओं की सेवा-सुश्रुषा की देखरेख करते हैं। यहां सभ्यता, संस्कृति एवं धार्मिक आस्था का संचार करता संस्कृत विद्यालय है।
=====================================================================

Monday, March 7, 2016

7> 51 শক্তিপীঠ,==And 52 Shakti Peeths

7>শক্তি+মাতৃ=Post=7***52 শক্তিপীঠ***( 1 to 4 )

1>--------------51 Shakti Peeth (51 शक्ति पीठ)
2>--------------51 Shakti Peeth (51 शक्ति पीठ) ( 51 শক্তিপীঠ,)
3>--------------51 शक्ति पीठो का विवरण (Details of 51 Shakti Peethas) :
4>--------------52 Shakti Peeths =52 Shakti Peeths ( 52 শক্তিপীঠ,)
5>--वैष्णो देवी मंदिर  =समुद्र से निकले 50 करोड़ साल पुराने पहाड़ पर विराजमान है वैष्णो देवी

*********************************************************************************

1>51 Shakti Peeth (51 शक्ति पीठ)

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।


कैसे बने शक्तिपीठ (कथा) :

सती के शव को लेकर जाते शिव

माता के इन 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में जो कथा है, वह यह है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।

51 शक्ति पीठो का विवरण (Details of 51 Shakti Peethas) :

1. किरीट शक्तिपीठ (Kirit Shakti Peeth) :
किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।

(शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है )
2. कात्यायनी शक्तिपीठ (Katyayani Shakti Peeth ) :
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।

3. करवीर शक्तिपीठ (Karveer shakti Peeth) :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ (Shri Parvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ (Vishalakshi Shakti Peeth) :
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ (Godavari Coast Shakti Peeth) :
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।

7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (Suchindram shakti Peeth) :
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

8. पंच सागर शक्तिपीठ (Panchsagar Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ (Jwalamukhi Shakti Peeth) :
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ (Bhairavparvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।


11. अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas Shakti Peeth) :
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan Shakti Peeth) :
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

13. कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti Peeth or Amarnath Shakti Peeth) :
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

14. नन्दीपुर शक्तिपीठ (Nandipur Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ (Shri Shail Shakti Peeth ) :
आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

16. नलहटी शक्तिपीठ (Nalhati Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth ) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

18. रत्नावली शक्तिपीठ (Ratnavali Shakti Peeth) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

19. अम्बाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shakti Peeth) :
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. जालंध्र शक्तिपीठ (Jalandhar Shakti Peeth) :
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।.

21. रामागरि शक्तिपीठ (Ramgiri Shakti Peeth) :
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ (Vaidhnath Shakti Peeth) :
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (Varkreshwar Shakti Peeth) :
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (Kanyakumari Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ (Bahula Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ (Ujjaini Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ (Manivedika Shakti Peeth) :
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ (Prayag Shakti peeth) :
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।

29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (Utakal Shakti Peeth) :
उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

30. कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

31. कालमाध्व शक्तिपीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

32. शोण शक्तिपीठ (Shondesh Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है।
यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti peeth) :
कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

34. जयन्ती शक्तिपीठ (Jayanti Shakti Peeth) :
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

35. मगध् शक्तिपीठ (Magadh Shakti Peeth) :
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ (Trishota Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ (Tripura Sundari Shakti Peeth) :
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ (Vibhasha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (Kurukshetra Shakti Peeth) :
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता के दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

40. युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (Ughadha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है।

41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (Virat Nagar Shakti Peeth) :
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ (Kalighat Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।


43. मानस शक्तिपीठ (Manasa Shakti Peeth) :
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

44. लंका शक्तिपीठ (Lanka Shakti Peeth) :
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. गण्डकी शक्तिपीठ (Gandaki Shakti Peeth) :
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (Guhyeshwari Shakti Peeth) :
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ (Hinglaj Shakti Peeth) :
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।

48. सुगंध शक्तिपीठ (Sugandha Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

49. करतोयाघाट शक्तिपीठ (Kartoyatat Shakti Peeth) :
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

50. चट्टल शक्तिपीठ (Chatal Shakti Peeth) :
बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ (Yashor Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।

==========================================================

2>51 Shakti Peeth (51 शक्ति पीठ) ( 51 শক্তিপীঠ,)

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।


कैसे बने शक्तिपीठ (कथा) :

 माता के इन 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में जो कथा है, वह यह है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।
======================================================================


3>51 शक्ति पीठो का विवरण (Details of 51 Shakti Peethas) :

1. किरीट शक्तिपीठ (Kirit Shakti Peeth) :
किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है। यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं।

(शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माता के इस रूप के स्वांगी है )

2. कात्यायनी शक्तिपीठ (Katyayani Shakti Peeth ) :
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।

3. करवीर शक्तिपीठ (Karveer shakti Peeth) :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ (Shri Parvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ (Vishalakshi Shakti Peeth) :
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ (Godavari Coast Shakti Peeth) :
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।

7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (Suchindram shakti Peeth) :
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।

8. पंच सागर शक्तिपीठ (Panchsagar Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ (Jwalamukhi Shakti Peeth) :
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ (Bhairavparvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।

11. अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas Shakti Peeth) :
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan Shakti Peeth) :
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।

13. कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti Peeth or Amarnath Shakti Peeth) :
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।

14. नन्दीपुर शक्तिपीठ (Nandipur Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ (Shri Shail Shakti Peeth ) :
आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।

16. नलहटी शक्तिपीठ (Nalhati Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth ) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।

18. रत्नावली शक्तिपीठ (Ratnavali Shakti Peeth) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।

19. अम्बाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shakti Peeth) :
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।

20. जालंध्र शक्तिपीठ (Jalandhar Shakti Peeth) :
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता का जालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण हैं।.

21. रामागरि शक्तिपीठ (Ramgiri Shakti Peeth) :
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ (Vaidhnath Shakti Peeth) :
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।

23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (Varkreshwar Shakti Peeth) :
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।

24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (Kanyakumari Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ (Bahula Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ (Ujjaini Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ (Manivedika Shakti Peeth) :
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ (Prayag Shakti peeth) :
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।

29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (Utakal Shakti Peeth) :
उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।

30. कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव रुरु हैं।

31. कालमाध्व शक्तिपीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग हैं।

32. शोण शक्तिपीठ (Shondesh Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है।
यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti peeth) :
कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।

34. जयन्ती शक्तिपीठ (Jayanti Shakti Peeth) :
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।

35. मगध् शक्तिपीठ (Magadh Shakti Peeth) :
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ (Trishota Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।

37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ (Tripura Sundari Shakti Peeth) :
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।

38 . विभाष शक्तिपीठ (Vibhasha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।

39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (Kurukshetra Shakti Peeth) :
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता के दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।

40. युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (Ughadha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है।

41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (Virat Nagar Shakti Peeth) :
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ (Kalighat Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।

43. मानस शक्तिपीठ (Manasa Shakti Peeth) :
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।

44. लंका शक्तिपीठ (Lanka Shakti Peeth) :
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।

45. गण्डकी शक्तिपीठ (Gandaki Shakti Peeth) :
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´ हैं।

46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (Guhyeshwari Shakti Peeth) :
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ (Hinglaj Shakti Peeth) :
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।

48. सुगंध शक्तिपीठ (Sugandha Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।

49. करतोयाघाट शक्तिपीठ (Kartoyatat Shakti Peeth) :
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।

50. चट्टल शक्तिपीठ (Chatal Shakti Peeth) :
बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ (Yashor Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहां शक्ति यशोरेश्वरी तथा भैरव चन्द्र हैं।
=======================================================

4>52 Shakti Peeths =52 Shakti Peeths ( 52 শক্তিপীঠ,)

52 Shakti Peeths in India, Bangladesh, Pakistan, Nepal and Sri Lanka

The Shakti Pithas (Sanskrit: शक्ति पीठ, Bengali: শক্তিপীঠ, Śakti Pīṭha, seat of Shakti) are places of worship consecrated to the goddess Shakti or Sati, the female principal of Hinduism and the main deity of the Shakta sect. They are sprinkled throughout the Indian subcontinent.

This goddess Shakti, the goddess of power is the complete incarnation of Adi Shakti, has three chief manifestations, as Durga, goddess of strength and valour, as Mahakali, goddess of destruction of evil and as Goddess Gowri, the goddess of benevolence.

Adi Shakti Peethas

Legend Shiva carrying the corpse of Dakshayani When Lord Bhrahma was tired creating the universe, he performed a yagya to make Lord Shiva happy and then Lord Shiva appeared and sacrificed Shakti which helped Bhrahma in the creation of the universe.

Then Bhrahma decided that one day Shakti would be given back to Lord Shiva. Therefore, Daksh (son of Bhrahma) performed several yagya's to obtain Shakti as his daughter in the form of Sati. It was then decided that Sati was brought into this world with the motive of getting married to Shiva.

However, due to Lord Shiva's curse to Bhrahma that he would not be worshiped and also his fifth head was cut off due to his lie in front of Lord Shiva..... Daksha started hating Lord Shiva and changed his will that at any cost he will not let Lord Shiva and Sati married.

But Destiny has its own fate, series of incidents happenned due to which Sati got attracted to Lord Shiva and finally one day Lord Shiva and Sati got married. This however not reduced Daksh's hatred towards Lord Shiva, on the contrary it started increasing.

Hence one day, in Satya Yuga, Daksha performed a yagna with a desire to take revenge on Lord Shiva. Daksha was angry because his daughter Dakshayani also known as Sati had married the 'yogi' God Shiva against his wish. Daksha invited all the deities to theyagna except for Shiva and Shakti. The fact that she was not invited did not deter Shakti from attending the yagna. She had expressed her desire to attend to Shiva who had tried his best to dissuade her from going. Shiva eventually allowed her to go escorted by his followers.

But Sati, being an uninvited guest, was not given any respect. Furthermore, Daksha insulted Shiva. Sati was unable to bear her father's insults toward her husband, so Dakshayani (the other name of Sati meaning the daughter of Daksha) invoked her yogic powers and immolated herself.

Enraged at the insult and the injury, Shiva destroyed Daksha's sacrifice, cut off Daksha's head, and later replaced it with that of a male goat as he restored him to life due to the prayers of all demi gods and Brahma. Still immersed in grief, Shiva picked up the remains of Sati's body, and performed the Tandava,the celestial dance of destruction, across all creation. The other gods requested Vishnu to intervene to stop this destruction, towards which Vishnu used the Sudarshana Chakra, which cut through the corpse of Sati. The various parts of the body fell at several spots all through the Indian subcontinent and formed sites which are known as Shakti Peethas today.

At all the Shakti Peethas, the Goddess Shakti is accompanied by Lord Bhairava (a manifestation of Lord Shiva).

Four Adi Shakti Pithas Some of the great religious texts like the Shiva Purana, the Devi Bhagavata, the Kalika Purana and the AstaShakti recognize four major Shakti Pithas (centers),

1. Bimala (Pada Khanda) (inside the Jagannath temple of Puri, Orissa), Tara Tarini (Sthana Khanda,
2. Purnagiri ,Breasts) (Near Berhampur, Orissa),
3. Kamakhya (Yoni khanda) (Near Guwahati, Assam) and
4. Dakhina Kalika (Mukha khanda) (Kolkata, West Bengal) originated from the limbs of the Corpse of Mata Sati in the Satya Yuga.

The Astashakti and Kalika Purana says (in Sanskrit):

"Bimala Pada khandancha,
Sthana khandancha Tarini (Tara Tarini),
Kamakshya Yoni khandancha,
Mukha khandancha Kalika (Dakshina Kalika)
Anga pratyanga sanghena
Vishnu Chakra Kshyta nacha"

Further explaining the importance of these four Pithas, the "Brihat Samhita" also gives the location of these Pithas as
Rushikulya* Tatae Devi,
Tarakashya Mahagiri,
Tashya Srunga Stitha Tara
Vasishta Rajitapara

* (Rushikulya is a holy river flowing on the foot hill of the Tara Tarini Hill Shrine).

"Shakti" refers to the Goddess worshipped at each location, all being manifestations of Dakshayani, Parvati or Durga;
"Body Part or Ornament" refers to the body part or piece of jewellery that fell to earth, at the location on which the respective temple is built. PlaceBody Part or Ornament Shakti In the 4 places

1.Puri, Orissa (inside Jagannath Temple complex)PadaBimala
2. Near Berhampur-Orissa Sthana khandaTara Tarini
3. Guwahati-AssamYoni khanda Kamakshya
4. Kolkata- West Bengal Mukha khanda Dakshina Kalika

Apart from these four there are 52 other famous Peethas recognised by religious texts.

According to the Pithanirnaya Tantra the 52 peethas are scattered all over India, Sri Lanka, Bangladesh, Nepal, Tibet, Bhutan and Pakistan. The Shivacharita besides listing 52 maha-peethas, speaks about 26 more upa-peethas.

The Bengali almanac, Vishuddha Siddhanta Panjika too describes the 52 peethas including the present modified addresses. A few of the several accepted listings are given below. One of the few in South India, Srisailam inAndhra Pradesh became the site for a 2nd century temple.

The 52 Shakti Pithas listed below & a few more:
-......."Body Part or Ornament" refers to the body part or piece of jewellery that fell to earth, at the location on which the respective temple is built.

-...... "Shakti" refers to the Goddess worshipped at each location, all being manifestations of Dakshayani, Parvati or Durga;

-........"Bhairava" refers to the corresponding consort, each a manifestation of Shiva;


1. Kanchipuram, Kamakshi temple, Kamakoti Peetam mentioned in Lalita Sahasram, Trishati, Astothram etc.Ottiyana (Ornament covering stomach) (shakti) Kamakshi / (Shiva) Kaal Bhairav

2. Nainativu (Manipallavam), Northern Province, Sri Lanka. Located 36 km from the ancient capital of the Jaffna kingdom, Nallur. The murti of the Goddess is believed to have been consecrated and worshipped by Lord Indra. The protagonist, Lord Rama and antagonist, Ravana of the Sanskrit epic Ramayana have offered obeisances to the Goddess. Nāga and Garuda of the Sanskrit epic Mahabharata; resolved their long standing feuds after worshipping this Goddess. Silambu (Anklets...........shakti...Indrakshi (Nagapooshani /Bhuvaneswari)/ .... Shiva/ Rakshaseshwar (Nayanair)

3. Shivaharkaray, a little distance from Sukkur Station from Karachi, Pakistan Eyes..... Shakti Mahishmardini / Shiva...Krodhish

4. Sugandha, situated in Shikarpur, Gournadi, about 20 km from Barisal town, Bangladesh, on the banks of Sonda river. Nose........ Shakti Sugandha/ Shiva Trayambak

5. Amarnath in Kashmir, India from Srinagar through Pahalgam 94 km by Bus, Chandanwari 16 km by walk Throat......... shakti Mahamaya / Shiva..Trisandhyeshwar

6. Jwalamukhi, Kangra, India from Pathankot alight at Jwalamukhi Road Station from there 20 km Tongue....... shakti Siddhida (Ambika) .......Shiva Unmatta Bhairav

7. Ambaji, at Anart, Gujarat, India Heart Ambaji
8. Nepal, near Pashupatinath Temple at Guhyeshwari Temple Both knees MahashiraKapali

9. Manas, under Tibet at the foot of Mount Kailash in Lake Mansarovar, a piece of StoneRight handDakshayaniAmar

10. Bardhaman in West Bengal, India NavelMata Sarbamangala DeviBhagwan Shiv/Mahadev

11. Gandaki in Pokhara, Nepal about 125 km on the banks of Gandaki river where Muktinath temple is situatedTempleGandaki ChandiChakrapani

12. Bahula, on the banks of Ajay river at Ketugram, 8 km from Katwa, Burdwan, West Bengal, IndiaLeft armGoddess BahulaBhiruk

13. Ujaani, 16 km from Guskara station under Burdwan district of West Bengal, IndiaRight wristMangal ChandikaKapilambar

14. Udaipur, Tripura, at the top of the hills known as Tripura Sundari temple near Radhakishorepur village, a little distance away from Udaipur town of Tripura, IndiaRight legTripura SundariTripuresh

15. On Chandranath hill near Sitakunda station of Chittagong District, Bangladesh. The famous Chandranath Temple on the top of the hill is the Bhairav temple of this Shakti Peetha, not the Shakti Peeth itself.Right armBhawaniChandrashekhar

16. Locally known as Bhramari Devi. Behind a rice mill, near Jalpesh Temple in Jalpaiguri, West Bengal, India.Left legBhraamariAmbar

17. Kamgiri, Kamakhya, in the Neelachal hills near Guwahati, capital of Assam, IndiaGenitalsKamakhyaUmanand

18. yoga adya at Khirgram under Burdwan district, West Bengal, India Big Toe (Right)JugaadyaKsheer Khandak

19. Kalipeeth, (Kalighat, Kolkata), India Right ToesKalikaNakuleshwar

20. Prayag near Sangam at Allahabad, Uttar Pradesh, IndiaFingerAlopi Devi Mandiror MadhaveswariBhava

21. Jayanti at Nartiang village in the Jaintia Hills district of Meghalaya state, India. This Shakti Peetha is locally known as the Nartiang Durga Temple.Left thighJayantiKramadishwar

22. Kireet at Kireetkona village, 3 km from Lalbag Court Road station under district Murshidabad, West Bengal, India CrownVimlaSanwart

23. Varanasi at Manikarnika Ghat on banks of the Ganges at Kashi, Uttar Pradesh, IndiaEarringVishalakshi & ManikarniKalbhairav

24. Kanyashram, Kanyakumari the Bhadrakali temple within the precincts of Kumari temple, Tamil Nadu, India (also thought to be situated in Chittagong, Bangladesh)BackSarvaniNimish

25. Present day Kurukshetra town or Thanesar ancient Sthaneshwar, at Haryana, India Ankle boneSavitri/BhadraKaliSthanu
26. Manibandh, at Gayatri hills near Pushkar 11 km north-west of Ajmer, Rajasthan, India Two BraceletsGayatriSarvanand

27. Shri Shail, at Joinpur village, Dakshin Surma, near Gotatikar, 3 km north-east of Sylhet town, Bangladesh Neck Mahalaxmi Sambaranand

28. Kankalitala, on the banks of Kopai River 10 km north-east of Bolpur station in Birbhum district, Devi locally known as Kankaleshwari West Bengal, India Bone Devgarbha Ruru

29. Kalmadhav on the banks of Shon river in a cave over hills near to Amarkantak, Madhya Pradesh, India Left buttock Kali Asitang

30. Shondesh, at the source point of Narmada River in Amarkantak, Madhya Pradesh, India Right buttock NarmadaBhadrasen

31. Ramgiri, at Chitrakuta on the Jhansi Manikpur railway line in Uttar Pradesh, India Right breast Shivani Chanda

32. Vrindavan, near new bus stand on Bhuteshwar road within Bhuteshwar Mahadev Temple, Vrindavan, Uttar Pradesh, India Ringlets of hair Uma Bhutesh

33. Shuchi, in a Shiva temple at Suchindrum 11 km on Kanyakumari Trivandrum road, Tamil Nadu, India Upper teeth Narayani Sanhar

34. Panchsagar exact location not known (thought to be near Haridwar)Bottom teethVarahiMaharudra

35. Bhavanipur union, at Karatoyatat, 28 km distance from interior Sherpur upazila, Bogra District, BangladeshLeft anklet (ornament) Arpana Vaman

36. Shri Parvat, near Ladak, Kashmir, India. Another belief: at Srisailam in Shriparvat hills under Kurnool district, Andhra Pradesh, India Right anklet (ornament)ShrisundariSundaranand

37. Vibhash, at Tamluk under district Purba Medinipur, West Bengal, India Left ankle Kapalini(Bhimarupa)Sarvanand

38. Prabhas, 4 km from Veraval station near Somnath temple in Junagadh district of Gujarat, India Stomach Chandrabhaga Vakratund
39. Bhairavparvat, at Bhairav hills on the banks of Shipra river a little distance from Ujjaini town, Madhya Pradesh, India Upper lips Avanti Lambkarna

40. Goddess Saptashrungi (Goddess with 18 arms)]], at Vani in Nasik, Maharashtra, India Chin (2 parts)BhramariVikritaksh
41. Sarvashail or Godavaritir, at Kotilingeswar temple on the banks of Godavari river near Rajamundry, Andhra Pradesh, India Cheeks Rakini or VishweshwariVatsnabh or Dandpani

42. Virat, near Bharatpur, Rajasthan, India Left toes Ambika Amriteshwar

43. Locally known as Anandamayee Temple. Ratnavali, on the banks of Ratnakar river at Khanakul-Krishnanagar, district Hooghly, West Bengal, Right Shoulder Kumari Shiva

44. Mithila, near Janakpur railway station on the border of India and Nepal Left shoulder Uma Mahodar

45. Nalhati, known as "Nalateshwari Temple" near Nalhati station of Birbhum district, West Bengal, India Vocal chord with part of the tracheae Kalika Devi Yogesh

46. Karnat, Kangra, himachalpradesh. Both ears Jayadurga Abhiru

47. Bakreshwar, on the banks of Paaphara river, 24 km distance from Siuri Town, district Birbhum, 7 km from Dubrajpur Rly. Station West Bengal, India Portion between the eyebrows Mahishmardini Vakranath

48. Jessoreswari, situated at Ishwaripur, Shyamnagar, district Satkhira, Bangladesh. The temple complex was built byMaharaja Pratapaditya, whose capital was Ishwaripur. Palms of hands and soles of the feet Jashoreshwari Chanda

49. Attahas village of Dakshindihi in the district of Bardhaman, near the Katwa railway station, in West Bengal, India Lips Phullara Vishvesh

50. Sainthia, locally Known as "Nandikeshwari" temple. Only 1.5 km from the railway station under a banyan tree within a boundary wall, Birbhum district, West Bengal, IndiaNecklaceNandiniNandikeshwar

51. Hinglaj (Or Hingula), southern Baluchistan a few hours North-east of Gawadar and about 125 km towards North-west from Karachi, PakistanBramharandhra (Part of the head)KottariBhimlochan

52. Danestwari (Kuldevi Of Bastar state ), Dantewada 80 km from Jagdalpur Tehsil, ChhattisgarhDaant (teeth)DanteshwariKapalbhairv

53. Vajreshwari , Kangra 18 km from Dharamshala Tehsil, Kangraleft Breast (teeth)VajreshwariKalbhairv

53. [Padmavati Devi] (Padmavatipuri Dham), Panns 80 km from Satna Madhya PradeshPadmPadmavati DeviKapalbhairav

54. Tarapith, on the banks of Dwarka river, about 6 km from Rampurhat sub-division, Birbhum district, West Bengal, India Third eye or spiritual eye (Tara)Tara

55. Chandika Sthan or chandisthan, at Munger temple on the banks of Ganges near Ganga Darshan, Bihar, IndiaLeft eyeChandika or Chandi deviBholeshankar

56. Patan Devi , at Tulsipur railway station on the border of India and Nepal dist.Balrampur near gorakhpur, uttar pradesh,Indialeft shoulder with clothsBadi Patan Devi/chhoti Patan DeviBhairav57Arbuda Devi, at Mount Abu, Rajasthan, IndiaAdharArbuda Devi or Adhar DeviBhairav
========================================================================
वैष्णो देवी मंदिर  =समुद्र से निकले 50 करोड़ साल पुराने पहाड़ पर विराजमान है वैष्णो देवी


a=माता वैष्णो देवी जिस पवित्र त्रिकुटा पहाड़ पर विराजमान हैं उसका निर्माण 50 करोड़ साल पहले समुद्र के गर्भ में हुआ। बाद में भारतीय प्लेट के यूरेशिया की प्लेट से टकराने की वजह से यह करीब पांच करोड़ साल पहले बाहर आया।

 जियोलोजी की भाषा में इस पहाड़ का नाम सिरबन है। इस पर पाए जाने वाले पत्थरों को डोलोस्टोन (चूना पत्थर) के नाम से जाना जाता है। इसकी खासियत यह है कि यह कैल्शियम कार्बोनेट से बना है। इसमें काफी मात्रा में मैगनिशियम कार्बोनेट भी है।

इस पहाड़ का अध्ययन करने वाले जम्मू विश्वविद्यालय के जियोलोजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर नवीन हक्कू ने बताया कि करीब 50 करोड़ साल पहले इस पहाड़ का निर्माण समुद्र के अंदर कई चरणों में हुआ। उस समय इस पूरे इलाके में गहरा समुद्र था।

करोड़ों साल तक चलती रही पर्वत बनने की प्रक्रिया

कैल्शियम कार्बोनेट के लगातार एक स्थान पर जमने के कारण इसका निर्माण शुरू हुआ। यह प्रक्रिया लगातार करोड़ों साल तक चलती रही और इसका निर्माण हुआ। इसकी उम्र का पता लगाने के लिए इस पर पाए गए ब्लू ग्रीन एलगी (शैवालों) के सूक्ष्म जीवाश्मों का अध्ययन किया गया।

इन शैवालों के सुक्ष्म बीज बाहर निकल आते हैं। इन बीजों के अध्ययन से पहाड़ की उम्र पता चलती है।। इसके अलावा लेड (शीशा), यूरेनियम और रेनियम जैसे तत्वों के अध्ययन से भी इसकी उम्र का पता लगाया गया। इन तत्वों की थोड़ी मात्रा त्रिकुटा पहाड़ की चटटनों में बची हुई है। उन्होंने बताया कि इन तत्वों की कम मात्रा का इसी से पता चलता है कि एक करोड़ कणों में से मात्र एक कण है।

इन तत्वों का पता लगाने के लिए रेडियोएक्टिविटी का अध्ययन किया जाता है। इसके तहत इन तत्वों के क्षरण से पता लगाया जाता है कि उसकी उम्र कितनी है। उदाहरण स्वरूप यूरेनियम लंबे समय के बाद शीशा बन जाता है।

समुद्र के अंदर के पहाड़ बाहर निकला

उन्होंने बताया कि भारतीय प्लेट के यूरेशिया की प्लेट से टकराने के कारण समुद्र के अंदर के पहाड़ बाहर निकल आए। उसी हिसाब से समुद्र भी पीछे हटता गया और पहाड़ों के साथ थल का हिस्सा भी बाहर आ गया।

इस लंबी प्रक्रिया की वजह से ही जिस पहाड़ पर माता वैष्णो देवी विराजमान हैं वह बाहर आया। इतने पुराने पहाड़ कई अन्य हिस्सों में भी मिलते हैं। मध्यप्रदेश की विंध्य रेंज, हिमाचल और पाकिस्तान के अनोटाबाद और मुजफ्फराबाद में भी मिलते हैं।

b=रेलवे ने वैष्णो देवी के लिए दो नई ट्रेनों को मंजूरी दी
गर्मियों की छुट्टियों में दिन-ब-दिन बढ़ रही मुसाफिरों की संख्या को ध्यान में रखते हुए रेलवे की तरफ से जम्मू और कटड़ा के लिए रेलवे ने दो ट्रेनें मंजूर की हैं। एक ट्रेन सप्ताह में एक दिन चलेगी, जबकि दूसरी ट्रेन सप्ताह में दो दिन चलेगी।

 यात्रियों की संख्या बढ़ने के साथ ही रेलवे की तरफ से नई ट्रेनों की संख्या में बढ़ोतरी की जा रही है। अभी तक रेलवे ने तीन नई ट्रेनें चला दी हैं, इनके अलावा दो नई ट्रेनें भी चलने लगी हैं। कामाख्या-कटड़ा स्पेशल एक्सप्रेस 27 मई को रवाना की गई थी, जो कि रविवार को जम्मू और कटड़ा पहुंचेगी।

पहले ही दिन यह ट्रेन 13 घंटे की देरी से रविवार के बजाय सोमवार सुबह जम्मू पहुंची, जबकि इसको कटड़ा से रवाना बुधवार को किया जाएगा। इसके अलावा तिरुनेलवेली-जम्मू तवी एक्सप्रेस मंजूरी की है। यह ट्रेन सोमवार और शुक्रवार को तिरुनेलवेली से रवाना होगी, जबकि रविवार और वीरवार को जम्मू से तिरुनेलवेली के लिए रवाना होगी।

c=जम्मू से 4 ट्रेनें रद्द, वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं पर सबसे ज्यादा असर
जालंधर में नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य के चलते जम्मू-कश्मीर से जुड़ी ट्रेनों का शेड्यूल बुरी तरह गड़बड़ाया हुआ है। रविवार को जम्मू-कश्मीर से जाने वाली चार ट्रेनें रद्द रहीं। इससे बाहरी राज्यों के यात्रियों खासकर माता वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ी।
गौरतलब है कि देश के विभिन्न हिस्सों से जम्मू रेलवे स्टेशन पर हर रोज करीब 50 हजार यात्री पहुंचते हैं। कोई कटड़ा जाता है तो कोई घाटी में छुट्टियां मनाने। वापसी के लिए भी इन यात्रियों का मुख्य साधन ट्रेन ही है।

रविवार को जम्मू तवी-इलाहाबाद स्पेशल, कटड़ा-पुरानी दिल्ली सुविधा एक्सप्रेस, उधमपुर-दिल्ली आनंद विहार टर्मिनल और जम्मू तवी-भावनगर सुविधा एक्सप्रेस रद्द रहीं। इनके रद्द होने के कारण दूसरी ट्रेनों पर यात्रियों की भीड़ बढ़ गई।

सभी ट्रेनें यात्रियों से खचाखच भरकर जम्मू से देश के विभिन्न हिस्सों के लिए रवाना हुईं। नॉन-इंटरलॉकिंग के चलते ही रविवार को बनारस से जम्मू तवी तक चलने वाली बेगमपुरा एक्सप्रेस रद्द की गई है। सोमवार को भी यह ट्रेन जम्मू से रद्द रहेगी।
नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य के चलते 24 मई से ट्रेनों का लेट पहुंचने का सिलसिला जारी है। रविवार को भी स्थिति गंभीर बनी रही। कामाख्या-कटड़ा स्पेशल एक्सप्रेस, करीब आठ घंटे की देरी से रात दो बजे पहुंची।

जबकि सुबह के समय शालीमार एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से सुबह साढ़े नौ बजे, पूजा एक्सप्रेस डेढ़ घंटे की देरी से दस बजे, जम्मू मेल पौने घंटे, दिल्ली उधमपुर एसी एक्सप्रेस एक घंटा, जम्मू तवी एक्सप्रेस साढ़े तीन घंटे, झेलम एक्सप्रेस पौने दो घंटे, अर्चना एक्सप्रेस डेढ़ घंटा, टाटा मूरी एक्सप्रेस दो घंटा और अहमदाबाद जम्मू तवी एक्सप्रेस पौने घंटे की देरी से पहुंची।


 d=जालंधर में नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य के चलते जम्मू-कश्मीर से जुड़ी ट्रेनों का शेड्यूल बुरी तरह गड़बड़ाया हुआ है। रविवार को जम्मू-कश्मीर से जाने वाली चार ट्रेनें रद्द रहीं। इससे बाहरी राज्यों के यात्रियों खासकर माता वैष्णो देवी के श्रद्धालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ी।


गौरतलब है कि देश के विभिन्न हिस्सों से जम्मू रेलवे स्टेशन पर हर रोज करीब 50 हजार यात्री पहुंचते हैं। कोई कटड़ा जाता है तो कोई घाटी में छुट्टियां मनाने। वापसी के लिए भी इन यात्रियों का मुख्य साधन ट्रेन ही है।

रविवार को जम्मू तवी-इलाहाबाद स्पेशल, कटड़ा-पुरानी दिल्ली सुविधा एक्सप्रेस, उधमपुर-दिल्ली आनंद विहार टर्मिनल और जम्मू तवी-भावनगर सुविधा एक्सप्रेस रद्द रहीं। इनके रद्द होने के कारण दूसरी ट्रेनों पर यात्रियों की भीड़ बढ़ गई।

सभी ट्रेनें यात्रियों से खचाखच भरकर जम्मू से देश के विभिन्न हिस्सों के लिए रवाना हुईं। नॉन-इंटरलॉकिंग के चलते ही रविवार को बनारस से जम्मू तवी तक चलने वाली बेगमपुरा एक्सप्रेस रद्द की गई है। सोमवार को भी यह ट्रेन जम्मू से रद्द रहेगी।

दस ट्रेनें घंटों लेट जम्मू पहुंचीं

ट्रेनPC: अमर उजाला
नॉन-इंटरलॉकिंग कार्य के चलते 24 मई से ट्रेनों का लेट पहुंचने का सिलसिला जारी है। रविवार को भी स्थिति गंभीर बनी रही। कामाख्या-कटड़ा स्पेशल एक्सप्रेस, करीब आठ घंटे की देरी से रात दो बजे पहुंची।

जबकि सुबह के समय शालीमार एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से सुबह साढ़े नौ बजे, पूजा एक्सप्रेस डेढ़ घंटे की देरी से दस बजे, जम्मू मेल पौने घंटे, दिल्ली उधमपुर एसी एक्सप्रेस एक घंटा, जम्मू तवी एक्सप्रेस साढ़े तीन घंटे, झेलम एक्सप्रेस पौने दो घंटे, अर्चना एक्सप्रेस डेढ़ घंटा, टाटा मूरी एक्सप्रेस दो घंटा और अहमदाबाद जम्मू तवी एक्सप्रेस पौने घंटे की देरी से पहुंची।


e=माता वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए गुड न्यूज
माता वैष्णो देवी को जाने वाले भक्तों के लिए पहली जून से नई ट्रेन सुविधा दी जा रही है। यह कामाख्या (असम) से कटरा के लिए चलेगी और साप्ताहिक होगी। स्पेशल पठानकोट कैट स्टेशन से होकर गुजरेगी। इस ट्रेन के चलने से पठानकोट वासियों व आसपास के लोगों को माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए बेहतर सुविधा मिलेगी।


माता वैष्णों देवी के दर्शनों के लिए पठानकोट से कटरा का रास्ता 150 किलोमीटर है। माता के दर्शन के लिए पहले जम्मू तक बस से जाना पड़ता है। इसके बाद कटरा जाते है। अब स्पेशल की सुविधा मिलने से भक्तजन माता के दर्शन आसानी से कर सकेंगे और समय पर घर आ सकेंगे।

 उल्लेखनीय है की स्कूलों में छुट्टियां होने पर गर्मियों के मौसम में लोग अधिकतर पहाड़ी स्थानों विशेषकर धार्मिक स्थानों पर जाते हैं। इस ट्रेन के चलने से भक्त आसानी से वैष्णो देवी माता के दर्शनों के लिए जा सकेंगे।
========================================================
वैष्णो देवी मंदिर

वैष्णो देवी मंदिर  , शक्ति को समर्पित एक पवित्रतम हिंदू मंदिर है, जो भारत के जम्मू और कश्मीर में वैष्णो देवी की पहाड़ी पर स्थित है। हिंदू धर्म में वैष्णो देवी, जो माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं, देवी मां का अवतार हैं।

मदिर, जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में कटरा नगर के समीप अवस्थित है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की दूरी पर स्थित है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं .और यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल द्वारा की जाती है। तीर्थ-यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उधमपुर से कटरा तक एक रेल संपर्क बनाया गया है।
वैष्णो देवी की यात्रा

कहते हैं पहाड़ों वाली माता वैष्णो देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं। उसके दरबार में जो कोई सच्चे दिल से जाता है, उसकी हर मुराद पूरी होती है। ऐसा ही सच्चा दरबार है- माता वैष्णो देवी का।

माता का बुलावा आने पर भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुँच जाता है। हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णो देवी का स्थान हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
क्या है मान्यता[

माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक परम भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। एक बार ब्राह्मण श्रीधर ने अपने गाँव में माता का भण्डारा रखा और सभी गाँववालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण दिया। पहली बार तो गाँववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उसके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए माँ वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण कन्यारूपी माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहाँ से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। आज इस पवित्र गुफा को 'अर्धक्वाँरी' के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहाँ माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माँ की रक्षा के लिए माँ वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा 'बाणगंगा' के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भक्तों की सारी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं। त्रिकुट पर वैष्णो मां ने भैरवनाथ का संहार किया तथा उसके क्षमा मांगने पर उसे अपने से उंचा स्थान दिया कहा कि जो मनुष्य मेरे दर्शन के पशचात् तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी। अत: श्रदालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवशय जाते हैं।
भैरोनाथ मंदिर

जिस स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान आज पूरी दुनिया में 'भवन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर माँ काली (दाएँ), माँ सरस्वती (बाएँ) और माँ लक्ष्मी पिंडी (मध्य) के रूप में गुफा में विराजित है, जिनकी एक झलक पाने मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इन तीनों के सम्मि‍लित रूप को ही माँ वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।

भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माँ से क्षमादान की भीख माँगी। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएँगे, जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा।
कैसे पहुँचें माँ के दरबार

माँ वैष्णो देवी की यात्रा का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं।

जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अत: यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुँचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है।

वैष्णो देवी के भवन तक की यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक गाँव है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 50 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुँचा जा सकता है। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुँचा जा सकता है।
वैष्णों देवी यात्रा की शुरुआत

माँ वैष्णो देवी यात्रा की शुरुआत कटरा से होती है। अधिकांश यात्री यहाँ विश्राम करके अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं। माँ के दर्शन के लिए रातभर यात्रियों की चढ़ाई का सिलसिला चलता रहता है। कटरा से ही माता के दर्शन के लिए नि:शुल्क 'यात्रा पर्ची' मिलती है।

यह पर्ची लेने के बाद ही आप कटरा से माँ वैष्णो के दरबार तक की चढ़ाई की शुरुआत कर सकते हैं। यह पर्ची लेने के तीन घंटे बाद आपको चढ़ाई के पहले 'बाण गंगा' चैक पॉइंट पर इंट्री करानी पड़ती है और वहाँ सामान की चैकिंग कराने के बाद ही आप चढ़ाई प्रारंभ कर सकते हैं। यदि आप यात्रा पर्ची लेने के 6 घंटे तक चैक पोस्ट पर इंट्री नहीं कराते हैं तो आपकी यात्रा पर्ची रद्द हो जाती है। अत: यात्रा प्रारंभ करते वक्त ही यात्रा पर्ची लेना सुविधाजनक होता है।

पूरी यात्रा में स्थान-स्थान पर जलपान व भोजन की व्यवस्था है। इस कठिन चढ़ाई में आप थोड़ा विश्राम कर चाय, कॉफी पीकर फिर से उसी जोश से अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। कटरा, भवन व भवन तक की चढ़ाई के अनेक स्थानों पर 'क्लॉक रूम' की सुविधा भी उपलब्ध है, जिनमें निर्धारित शुल्क पर अपना सामान रखकर यात्री आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं।

कटरा समुद्रतल से 2500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यही वह अंतिम स्थान है जहाँ तक आधुनिकतम परिवहन के साधनों (हेलिकॉप्टर को छोड़कर) से आप पहुँच सकते हैं। कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर भवन (माता वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) है। भवन से 3 किमी दूर 'भैरवनाथ का मंदिर' है। भवन से भैरवनाथ मंदिर की चढ़ाई हेतु किराए पर पिट्ठू, पालकी व घोड़े की सुविधा भी उपलब्ध है।

कम समय में माँ के दर्शन के इच्छुक यात्री हेलिकॉप्टर सुविधा का लाभ भी उठा सकते हैं। लगभग 700 से 1000 रुपए खर्च कर दर्शनार्थी कटरा से 'साँझीछत' (भैरवनाथ मंदिर से कुछ किमी की दूरी पर) तक हेलिकॉप्टर से पहुँच सकते हैं।

आजकल अर्धक्वाँरी से भवन तक की चढ़ाई के लिए बैटरी कार भी शुरू की गई है, जिसमें लगभग 4 से 5 यात्री एक साथ बैठ सकते हैं। माता की गुफा के दर्शन हेतु कुछ भक्त पैदल चढ़ाई करते हैं और कुछ इस कठिन चढ़ाई को आसान बनाने के लिए पालकी, घोड़े या पिट्ठू किराए पर लेते हैं।

छोटे बच्चों को चढ़ाई पर उठाने के लिए आप किराए पर स्थानीय लोगों को बुक कर सकते हैं, जो निर्धारित शुल्क पर आपके बच्चों को पीठ पर बैठाकर चढ़ाई करते हैं। एक व्यक्ति के लिए कटरा से भवन (माँ वैष्णो देवी की पवित्र गुफा) तक की चढ़ाई का पालकी, पिट्ठू या घोड़े का किराया 250 से 1000 रुपए तक होता है। इसके अलावा छोटे बच्चों को साथ बैठाने या ओवरवेट व्यक्ति को बैठाने का आपको अतिरिक्त शुल्क देना पड़ेगा।
ठहरने का स्थान

माता के भवन में पहुँचने वाले यात्रियों के लिए जम्मू, कटरा, भवन के आसपास आदि स्थानों पर माँ वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की कई धर्मशालाएँ व होटले हैं, जिनमें विश्राम करके आप अपनी यात्रा की थकान को मिटा सकते हैं, जिनकी पूर्व बुकिंग कराके आप परेशानियों से बच सकते हैं। आप चाहें तो प्रायवेट होटलों में भी रुक सकते हैं।

नवरात्रि में लगता है मेला : माँ वैष्णो देवी के दरबार में नवरात्रि के नौ दिनों में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। कई बार तो श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या से ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है कि पर्ची काउंटर से यात्रा पर्ची देना बंद करनी पड़ती है। इस वर्ष भी नवरात्रि में हर रोज लगभग 100000 से अधिक श्रद्धालु माँ वैष्णो के दर्शन के लिए कटरा आते हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल

कटरा व जम्मू के नज़दीक कई दर्शनीय स्थल ‍व हिल स्टेशन हैं, जहाँ जाकर आप जम्मू की ठंडी हसीन वादियों का लुत्फ उठा सकते हैं। जम्मू में अमर महल, बहू फोर्ट, मंसर लेक, रघुनाथ टेंपल आदि देखने लायक स्थान हैं। जम्मू से लगभग 112 किमी की दूरी पर 'पटनी टॉप' एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। सर्दियों में यहाँ आप स्नो फॉल का भी मजा ले सकते हैं। कटरा के नजदीक शिव खोरी, झज्झर कोटली, सनासर, बाबा धनसार, मानतलाई, कुद, बटोट आदि कई दर्शनीय स्थल हैं।
इन बातों का रखें ख्याल
वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहाँ जाने का बेहतर मौसम गर्मी है।
सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान -3 से -4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों के खिसकने का खतरा भी रहता है। अत: इस मौसम में यात्रा करने से बचें।
ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढि़यों का उपयोग ‍न करें।
भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहाँ तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियाँ हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ जरूर रखें।
चढ़ाई के वक्त जहाँ तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएँ ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो।
पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी।
ट्रेकिंग शूज चढ़ाई में आपके लिए बहुत आरामदायक होंगे।
माँ का जयकारा आपके रास्ते की सारी मुश्किलें हल कर देगा।

हिंदू महाकाव्य के अनुसार, मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे. मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं. जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही. त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की. सीता की खोज करते समय श्री राम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी. त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्री राम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया किकलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे.

इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफ़ा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा.रावण के विरुद्ध श्रीराम की विजय के लिए मां ने 'नवरात्र' मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उक्त संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्री राम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी. त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी.


समय के साथ-साथ, देवी मां के बारे में कई कहानियां उभरीं. ऐसी ही एक कहानी है श्रीधर की. श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे। वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे। एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' (भिक्षुकों और भक्तों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं। उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ। भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया। 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था। भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैष्णो देवी ने अधकावरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया। दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं. देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि॰मी॰ की दूरी परभैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी.

भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें.इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं.

इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली. देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं. वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया. तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।

=========================================