Saturday, February 20, 2016

2>गुप्तनवरात्र+बनेगेबिगड़ेकाम+सिर्फ पुरूषकर सकतेदर्शन+कैसेहुईं दुर्गा किसने दिएअस्त्र-

2>শক্তি+মাতৃ=Post=( 2)***गुप्त नवरात्र रहस्य***( 1 to 9 )

1>----------------गुप्त नवरात्र रहस्य
2>----------------गुप्त नवरात्रि आज से, ये उपाय अपनाने से बनेगे बिगड़े काम
3>----------------एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां सिर्फ पुरूष कर सकते है मां के दर्शन
4>----------------कैसे प्रकट हुईं महादुर्गा, किस देवता ने दिए उन्हें कौनसे अस्त्र-शस्त्र? -
5-----------------नवरात्र  माता की भक्ति के लिए श्रेष्ठ समय ।
6-----------------यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो
7-------------------चैत्र वासन्तिक नवरात्रि 8 अप्रैल 2016 से 15 अप्रैल 2016 
8------------------प्रयोगो को करने वाले-- बताये हुए प्रयोग प्रारम्भ करेl
9------------------आरधना सिर्फ नो दिन ही नहीं...
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1>गुप्त नवरात्र रहस्य

रहस्यों का रहस्य गुप्त नवरात्र👣आओ जानें क्यों कहते हैं इसे गुप्त नवरात्र
माघ गुप्त नवरात्र 09 फरवरी 2016 से लेकर 17 फरवरी 2016 तक रहेगी देवशयनी जब भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होतें हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं उस समय पृथ्वी पर रूद्र वरुण यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है सतयुग में चैत्र नवरात्रत्रेता में आषाढ़ नवरात्र द्वापर में माघ कलयुग में आश्विन की साधना-उपासना का विशेष महत्व रहता है मार्कंडेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल में दैत्य राक्षस दुर्ग ने ब्रह्मा को तप से प्रसन्न कर के चारों वेद प्राप्त कर लिए तब वह उपद्रव करने लगा वेदों के नष्ट हो जाने से देव-ब्राह्मण पथ भ्रष्ट हो गए जिससे पृथ्वी पर वर्षों तक अनावृष्टि रही देवताओं ने मां पराम्बा की शरण में जाकर दुर्ग का वध करने का निवेदन किया मां ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला, धूमावती, त्रिपुरसुंदरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध कियादस महाविद्याओं की साधना के लिए तभी से 'गुप्त नवरात्र' मनाया जाने लगा इस गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है साथ ही संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना भी की जाती है यह साधनाएं बहुत ही गुप्त स्थान पर या किसी सिद्ध श्मशान में की जाती हैं दुनियां में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्रयंबकेश्वर (नासिक) और
उज्जैन स्थित चक्रतीर्थ श्मशान
गुप्त नवरात्रि में यहां दूर-दूर से साधक गुप्त साधनाएं करने यहां आते हैं नवरात्रों में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिये अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजििनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है, वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है
शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही देवी सरस्वती प्रकट हुई थीं इन्हीं कारणों से माघ मास की नवरात्रि में सनातन, वैदिक रीति के अनुसार देवी साधना करने का विधान निश्चित किया गया है गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि (माघ तथा आषाढ़) में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते “सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र

गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है…गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई,और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं,जुआरी है,लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं,उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा यदि आप भी एक या कई तरह के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं और आपकी इच्छा है कि माता की कृपा से जीवन में सुख समृद्धि आए तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें। तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है पाकिस्तान स्थित हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया था ऐसी मान्यता है कि यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए। गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है हां, इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है ।धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है दरअसल, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता हैआयुर्वेद के मुताबिक इस बदलाव से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म ग्रंथों के अनुसार गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है 💫
देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है। यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं। यही कारण है कि देवी दुर्गा के कुछ खास और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है सभी’नवरात्र’ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- ‘नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते’। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं👣
नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में 👣दस महाविद्याओं की साधना की जाती है
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक👤 महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है 🌏पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली 🌐गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है ❄ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है
जय माता दी जय माँ तारा
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2>गुप्त नवरात्रि आज से, ये उपाय अपनाने से बनेगे बिगड़े काम
 हिंदू धर्म एक ऐसा धर्म है जहां पर अपने रीति-रिवाज, परंपराए और त्योहार है। इसी क्रम में एक है नवरात्र। जिसमें मां दुर्गा की साधना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जती है। माना जाता है कि नवरात्रि में मांदुर्गा के नौ रुपों की अराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
इन दिनों पति-पत्नी रहना चाहिए अलग
देवी पुराण के अनुसार हर साल 4 नवरात्र पडते है।
इनमें से दो नवरात्र चैत्र मास और आश्विन मास की मानी जाती है। इसमें आश्विन मास की सबसे प्रमुख मानी जाती है। जो कि शारदीय नवरात्र के नाम से जानी जाती है। 
इसी तरह माघ मास और आषाढ़  मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस बारें में ज्यादा लोगों को नहीं पता होता है। इस बार यह नवरात्र 9 फरवरी से शुरु होकर 17 फरवरी तक चलेगी।
इस नवरात्र का भी अपना एक महत्व है। इस नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इसमें विशेषकर तांत्रिक साधनाए, शक्ति साधना, महाकाल आदि की पूजा का महत्व होता है। इसमें बहुत ही कड़ी साधना और व्रत होता है। जिसके कारण उस साधक को दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति होती है।

इस साधना के लिए सबसे अच्छी जगह श्मशान मानी जाती है। भय के कारण रात के समय कोई श्मशान आता भी नहीं है इसलिए साधक पूरी एकाग्रता के साथ साधना कर पाता है। भारत में गुप्त साधना करने के लिए चार श्मशान घाट प्रसिद्ध हैं, ये साधनाएं केवल यहीं संपन्न होती हैं। इन श्मशान घाटों में मध्यरात्रि के बाद साधकों को देखा जा सकता है।
अगर आपको भी अपने साथी से कोई परेशानी हो तो आप भी इस गुप्त नवरात्रि में इस मंत्र का कम से कम 108 बार जाप कर आप अपने दापत्यं जीवन में खुशियां ला सकते है। साथ ही सुबह और शाम अपने घर में शंख बजाएं।
सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म निरत
अगर आपके घर में शांति नहीं रहती हमेशा गृह-क्लेश रहता है तो गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन स्फटिक की माला द्वारा माता सीता और भगवान राम का ध्यान करते हुए 324 बार इस मंत्र का जाप करें। साथ ही साथ ग्यारह बार हवन कुंड में घी की आहुति दें और भगवान को खीर का भोग लगाएं।
जब ते राम ब्याहि घर आए, नित नव मंगल मोद बधाए।।

अगर आपको या आपके घर में कोई बीमारी है, लेकिन दवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है तो यह गुप्त नवरात्रि आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। इस दिनों में रोज शिवलिंग में जल चढाए। इससे आपको लाभ मिलेगा। जिससे भगवान शिव की आपके ऊपर कृपा बनी रहेगी।
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3>एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां सिर्फ पुरूष कर सकते है मां के दर्शन

नई दिल्ली: आपने कभी ऐसी मंदिर के बारे में सुना है कि मां दुर्गा के मंदिर में महिलाएं नही जा सकती है। अगर वो गई तो मां उनसे क्रोधित हो जाती है और उन्हे दंडित करती है। अगर आपने नही सुना या पढ़ा है, तो हम अपना खबर में एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे जहां पर सिर्फ पुरुष ही अंदर जा सकते है। यह मंदिर है माता पार्वती का। जिसे माता पार्वती मंदिर के नाम से जानते है।

इस मंदिर में अगर महिलाएं आज्ञा न मान कर अंदर जानें की कोशिश करती है, तो मां कोध्रित होकर मधुमक्खी के रूप में उसे दंडित करती है। जानिए इसके बारें में और जानकारी।

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मध्यप्रदेश के श्योपुर से 3 किमी दूर है जाटखेड़ा गांव। जहां पर है पार्वती माता मंदिर। इसकी सीढ़ियों में महिलाओं को चढ़ने की इजाजत नही है। साथ ही इस मंदिर की मान्यता है कि इस मंदिर में जो मां की मूर्ति है उसमें लाल रंग की चुनर नही चढ़ा सकते है। जबकि मां को लाल रंग अतिप्रिय होता है।

यहां पर मां पार्वती को श्रृंगार के रूप में केवल सफेद या पीली रंग की चुनर और इसी रंग के फूल चढ़ा सकते है। साथ ही यह श्रृंगार केवल पुरुष चढा़ सकते है और वो ही केवल मां के चरणों को स्पर्श कर सकते है। यहां पर महिलाएं बाहर से ही दर्शन कर लौट जाती है। इस बात की अवमानना करना उनके लिए भारी पड़ता है। यह कई बार हो चुका है।

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माना जाता है कि यह मंदिर 300 साल पुराना है। इस मंदिर में 20 सीढ़ियां है। 17 सीढ़िया तक तो महिलाएं आ सकती है। जैसे ही 18 वीं सीढ़ी आती है वहां पर एक चेतावनी बोर्ड लगा है जिसमें लाल रंग से लिखा है कि इसके आगे महिलाएं और युवतियां नही जा सकती है। इन तीन सीढियों से करीब 20 फीट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। जिसमें मां पार्वती की मूर्ति विराजित है। महिलाओं और युवतियों को 11 फीट से ही हिदायत दे दी जाती है कि यहां से दूर रहें। इसी कारण वह मंदिर के नीचें से ही मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती है।

महिलाओं और युवतियों का इस मंदिर में न जाने का कारण

इस मंदिर के पुजारी भवानी शंकर जिनके पूर्वज इस मंदिर के पुजारी रह चुके है। वह इस बारें में बताते है कि महिलाओं को महावारी (पीरियड) होने के बाद वह 5 दिन तक अशुद्ध होती है। इस कारण वह नही आ सकती है। इसी कारण हम हर महिला से दर्शन करने से पहले यह बात नही पुछ सकते है। इसके कारण यहां महिलाओं और युवतियों का आना वर्जित है। इसीकारण पुराने जमानें से ही यह प्रतिबंध लगा दिया गया था।

मां की आज्ञा को न मानने वाले में होती है मां पार्वती भयंकर क्रोधित

माना जाता है कि इस बात को जो महिला या युवती नही मानती है तो मां उस पर क्रोधित हो जाती है और उसे सजा देती है। यहां के पुजारी ने बताया कि करीब 1 साल पहले की बात है कि एक महिला काली साड़ी पहनकर एक युवक जिसने उस समय शराब पी रखी थी। दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए। जैसे ही दोनों मंदिर में अंदर गए वैसे ही मधुमक्खियों का एक झुंड ने उनपर हमला कर दिया। मधुमक्खियों ने उन्हें इस कदर घायल कर दिया कि दोनों को कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा था।

इसी तरह एक घटना फिर घटी। जब एक महिला भी मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करने लगी वैसे ही मधुमक्खियों का झुंड आ गया। वह महिला डर कर वापस नीचे आ गई। तब जाकर मधुमक्खियां शांत हुईं और वह वापस चली गई।
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4> कैसे प्रकट हुईं महादुर्गा, किस देवता ने दिए उन्हें कौनसे अस्त्र-शस्त्र? -

पौराणिक कथाएं (Pauranik Kathayen)

देवी भगवती ने असुरों का वध करने के लिए कई अवतार लिए। सर्वप्रथम महादुर्गा का अवतार लेकर देवी ने महिषासुर का वध किया था। दुर्गा सप्तशती में देवी के अवतार का स्पष्ट उल्लेख आता है, जिसके अनुसार-

एक बार महिषासुर नामक असुरों के राजा ने अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग छिन लिया। जब सारे देवता भगवान शंकर व विष्णु के पास सहायता के लिए गए। पूरी बात जानकर शंकर व विष्णु को क्रोध आया तब उनके तथा अन्य देवताओं से मुख से तेज प्रकट हुआ, जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया।

शिव के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, कुबेर के तेज से नाक, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीनों नेत्र, संध्या के तेज से भृकुटि और वायु के तेज से कानों की उत्पत्ति हुई।

इसके बाद देवी को शस्त्रों से सुशोभित भी देवों ने किया। देवताओं से शक्तियां प्राप्त कर महादुर्गा ने युद्ध में महिषासुर का वध कर देवताओं को पुन: स्वर्ग सौंप दिया। महिषासुर का वध करने के कारण उन्हें ही महादुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।

देवताओं ने दिए माता दुर्गा को शस्त्र
देवी भागवत के अनुसार, शक्ति को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने अपने प्रिय अस्त्र-शस्त्र सहित कई शक्तियां उन्हें प्रदान की। इन सभी शक्तियों को प्राप्त कर देवी मां ने महाशक्ति का रूप ले लिया-

1. भगवान शंकर ने मां शक्ति को त्रिशूल भेंट किया।
2. भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र प्रदान दिया।
3. वरुण देव ने शंख भेंट किया।
4. अग्निदेव ने अपनी शक्ति प्रदान की।
5. पवनदेव ने धनुष और बाण भेंट किए।
6. इंद्रदेव ने वज्र और घंटा अर्पित किया।
7. यमराज ने कालदंड भेंट किया।
8. प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला दी।
9. भगवान ब्रह्मा ने कमंडल भेंट दिया।
10. सूर्य देव ने माता को तेज प्रदान किया।
11. समुद्र ने मां को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं।
12. सरोवरों ने उन्हें कभी न मुरझाने वाली कमल की माला अर्पित की।
13. पर्वतराज हिमालय ने मां दुर्गा को सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेंट किया।
14. कुबेर देव ने मधु (शहद) से भरा पात्र मां को दिया।
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5>नवरात्र  माता की भक्ति के लिए श्रेष्ठ समय ।

नवरात्र का समय माता की भक्ति के लिए श्रेष्ठ समय माना गया है। इन दिनों मां दुर्गा की भक्ति करने वाले श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
यहां अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग उपाय बताए जा रहे हैं।
इन्हें अपनाने वाले व्यक्ति को जल्द ही सकारात्मक फल होते हैं, ऐसी मान्यता है-
सुंदर रूप की प्राप्ति हेतु- दुर्गाजी को शहद को भोग लगाने से भक्त को सुंदर रूप प्राप्त होता है एवं त्वचा की रंगत निखरती है। इस प्रयोग को विशेष रूप से नवरात्र में करना चाहिए।
व्यापार उन्नति हेतु- कारोबार में प्रगति करने हेतु नवरात्र के शनिवार को सूर्योदय के पहले पीपल के ग्यारह पत्तें लेकर उन पर राम नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर हनुमानजी को पहना दें। इस प्रयोग को गुप्त रखे।

व्यापारिक यात्रा सफलता हेतु- कारोबारी यात्रा को सफल बनाने हेतु कुछ रूपए गुप्त स्थान पर रख दें। इसके बाद यात्रा पर जाएं। यात्रा से आने के बाद इसी धन से गरीब को भोजन करा दें।

सभी परेशानियों के नाश हेतु- नवरात्र में माता दुर्गा को मालपुओं का भोग लगाने से एवं रात को मालपुओं से हवन करने से माता की प्रसन्नता प्राप्त होती है। सभी विघ्रों का नाश होता हैं।

बच्चों के बुद्धि विकास हेतु- छोटे अथवा मध्यम आयु के बच्चों की बुद्धि विकास हेतु उनसे माता दुर्गा को केले का भोग लगवाएं एवं उन्ही केलों को बालकों को सेवन करवाएं इससे उनकी बुद्धि का विकास होता है।

हर कार्य में सफलता के लिए- प्रत्येक कार्य में सफलता के लिए नवरात्र में प्रात: श्रीरामरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से हर कार्य को सफलता पूर्वक करने की शक्ति मिलती है। बाधाएं समाप्त होती हैं।

नौकरी पाने हेतु- नवरात्र में रोजाना शाम को अथवा रात को रामचरित मानस के अतंर्गत सुंदरकांड का पाठ करने से कुछ ही दिनों में बेहतरीन नौकरी की प्राप्ति होती है एवं व्यापार में वृद्धि होती हैं।

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6>यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर की पुड़िया और 50 ग्राम तिल का तेल डाल कर कीकर (देसी बबूल) की जड़ में डालें या किसी भी रविवार को दोपहर 12 बजे भैरव स्थल पर चढ़ा दें।
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7>चैत्र वासन्तिक नवरात्रि 8 अप्रैल 2016 से 15 अप्रैल 2016 तक प्रतिदिन करे सर्व मनोकामना पूर्ति तथा लक्ष्मी प्राप्ति के लिये ये दुर्लभ प्रयोग यह प्रयोग दिखने मे साधारण है परंतु पूर्ण
प्रभावशाली है,सिर्फ इनमे आपका विश्वास अटूट होना
चाहिये क्यूके यह सभी प्रयोग आदि शक्ति माँ भवानी दुर्गा के है जो इस संसार की जगत-
जननी एवं एवं सभी प्राणीयो की पालनहार एवं समस्त जगत की कर्ता धर्ता हैl
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8>प्रयोगो को करने वाले-- बताये हुए प्रयोग प्रारम्भ करेl
प्रयोगो को नीचे बताये गये प्रयोगो को करने वाले साधक को प्रतिदिन स्नान आदि से नृवित्त होकर साफ़ बस्त्र धारण करेl फिर पुजाघर या मंदिर मे देवी जी की प्रतिमा के सामने देशी घी का दीपक जला कर देवी जी को स्नान कराये फिर बस्त्र अस्टगंध रोली हल्दी दुर्वा चढाये फिर लाल फूलो की माला चढाये(गुडहल)की माला लक्ष्मी जी को बहुत ही प्रिय हैl फिर धूप दीप दिखाये तथा भोग(प्रसाद) अर्पित करेl
तदनुपरान्त देवी जी ध्यान करने के उपरांत ही प्रतिदिन के बताये हुए प्रयोग प्रारम्भ करेl
ध्यानमंत्र...
देवि प्रपन्नार्ति हरे प्रसीदत
प्रसीद मातर जगतोखिल्स्यl
प्रसीद विश्वेशरि पाहि विश्वम
त्वम ईश्वरी देवि चराचरस्यll
1>>>=== प्रथम दिवस पे लाल वस्त्र मे अपनी ३ मनोकामना
बोलकर ३ लौंग बांधकर माँ के चरनो मे समर्पित करे और
“ॐ ह्रीं कामना सिद्ध्यर्थे स्वाहा” का
१०-१५ मिनिट तक जाप करे,दूसरे दिन सुबह पवित्र होकर लाल वस्त्र मे देखे कितनी लौंग बची
हुयी है,अगर सारी लौंग गायब हो जाए तो समज लीजिये ३ कामनाये पूर्ण होगी,क्रिया
का समय है रात्रि मे ११:३६ से ०१:४२ तक..........
2>>>=== द्वितीय दिवस पर एक स्टील के प्लेट
मे कुमकुम से स्वस्तिक बनाये और उस प्लेट मे अनार का शुद्ध रस भर दीजिये और वह प्लेट माँ के चरनोमे रखिये साथ मे
आरोग्य प्राप्ति की कामना करे,आप चाहे तो किसी दूसरे व्यक्ति विशेष के लिए भी कर सकते है,इस प्रयोग मे अनार के रस को देखते हुये 
“ॐ ह्रीं आरोग्यवर्धीनी
ह्रीं ॐ नम:” का ३० मिनिट तक जाप करना है,दूसरे दिन स्नान करे और फिर अनार के रस से स्नान करे और
जल से फिर एक बार शुद्धोदक स्नान करे,किसी और के लिए कर रहे हो तो उनका स्नान करे,संभव ना हो तो अनार 
के रस को पीपल के वृक्ष मे चढ़ा दीजिये पूजा
योग का समय शाम को ६:३० से ८ बजे तक......
3>>>=== तृतीय दिवस पर ७ काली मिर्च के दाने लीजिये 
उसे सर से लेकर पैरो तक ७ बार उतारिये और काले वस्त्र मे बांधकर माँ के चरनो मे समर्पित करे और मंत्र का ३६
मिनिट तक जाप कीजिये
“ॐ क्रीं सर्व दोष निवारण कुरु कुरु क्रीं फट”,इस प्रयोग से
तंत्र बाधा समाप्त होती है,प्रयोग के बाद दूसरे दिन सुबह काले वस्त्र के पोटली को जल मे प्रवाहित कर दीजिये,
साधना का समय रात्रि मे १० बजे से १२:२४ तक
रहेगा...........
4>>>=== चतुर्थ दिवस पर लाल वस्त्र मे कुमकुम से स्वस्तिक निकाले
और स्वस्तिक पर ९ कमलगट्टे स्थापित करे,उनका पूजन करे,साथ
मे २७ मिनिट तक “ॐ श्रीं प्रसीद प्रसीद श्रीयै नमः” 
मंत्र का जाप करे,समय होगा रात्री मे ७.५५ से १०.५८ तक॰साधना से पूर्व एवं
दूसरे दिन माँ को प्रार्थना करे की मेरा जीवन आपकी कृपा से धन-धान्य-सुख-सौभाग्य युक्त
हो,और वस्त्र सहित कमलगट्टे जल मे प्रवाहित कर दे........
5>>>=== पंचम दिवस पर पाँच हरी इलायची माँ के चरनो मे समर्पित करे 
और व्यवसाय वृद्धि की कामना करे,साथ मे श्री सूक्त का ५ बार पाठ करे,
और दूसरे दिन
इलायची को किसी डिबिया मे संभाल कर रखे तो शीघ्र ही व्यवसाय मे वृद्धि एवं लाभ
की प्राप्ति होती हे। साधना समय शाम ६.३० से रात्री ११ बजे तक.........
6>>>=== षष्टम दिवस पर पाँच केले माँ के चरनो मे समर्पित करे और माँ
से गुरुकृपा प्राप्ति की कामना करे और
 “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शक्ति सिद्धये नमः” का ४५ मिनिट तक जाप करे॰ 
साधना का समय दोपहर ४.३० से रात्री मे ९ बजे तक रहेगा। दूसरे दिन केले छोटे बालको
मे बाँट दे.....
7>>>=== सप्तम दिवस पर १०८ हरी चूड़िया माँ के चरनो मे समर्पित करे,
और माँ से बल,बुद्धि,विद्या एवं सुख प्राप्ति की कामना करे साथ मे 
“ॐ नमो भगवती जगदंबा सर्वकामना सिद्धि ॐ” का ३२४ बार उच्चारण करे तथा
 दूसरे दिन १२-१२ चूड़िया ९ कन्याओ मे बाँट दे....साधना का समय रात्री ९ बजे से १.३० बजे
तक.......
8>>>=== अष्टम-नवम दिन पर दो समय साधना करनी हैं, को
सुबह ६ से ७.४७ के शुभ समय पर १०९ लौंग की माला बनाये जिस मे १ लौंग मेरु होगा और इसी माला से
“ॐ ७ ४ १ ५ २ ३ ६ ॐ दूं दुर्गायै नमः” इस
विशेष अंक मंत्र का १ माला जाप करे, मंत्र का उच्चारण होगा
“ॐ सात चार एक पाँच दो तीन छ: ॐ दूं दुर्गायै नमः”,
मंत्र जाप के बाद माला को किसी दुर्गा जी के मंदिर जाकर शेर के गले मे पहना दे और
अपनी विशेष कामना शेर के कान मे बोल दे या फिर आप माला को जहा कही दुर्गा जी के विग्रह
की स्थापना हूई हो वहा भी यह कार्य कर सकते है,माला पहेनाने का समय होगा दोपहर मे ११:३० से
१२:३० तक.......
9>>>=== नवमी तिथि को 9 कुँवारी कन्या का पूजन करे 
और उन्हे उपहार स्वरूप काजल की डिब्बिया अवश्य दे,
और ज्यादा से ज्यादा त्रि-शक्ति मंत्र का जाप करे
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ नमः”,
कुँवारी कन्या पूजन का समय होगा सुबह ७:४८ से रात्री ६:५७ तक....................
10>>>=== यह दिवस विजय प्राप्ति का सर्व श्रेष्ठ दिवस है ज्यादा से
ज्यादा गुरुमंत्र का जाप करे एवं “ॐ रां रामाय नमः” का जाप करे अवश्य ही आपको जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे 
पूर्ण विजय प्राप्ति होगीl
ऊपरोक्त प्रयोग बहुत ही सिद्ध एवं आजमाये हुए प्रयोग है l इन प्रयोगो को कोई भी कर सकता है चाहे कोई पुरुष हो या स्त्री lअत: इस प्रयोग को केवल अपने कल्याण हेतु ही प्रयोग करे इन प्रयोगो मे पूर्ण आस्था एवं माता रानी के प्रति विस्वास का होना परम ही आवश्यक हैl जहा तक संभव हो सके साधना पूर्ण शांतिमय स्थान पुजाघर या किसी मंदिर मे करेl खुद के विचारो पर सँयम रखेl तथा ब्रह्मचर्य का पालन करेl तथा अपने बडो बुजुर्गो का आशीर्वाद ले तथा स्त्री का पूर्ण सम्मान करना परम ही आवश्यक हैl

llजय श्री रामll जय माता दीll जय शिव शक्तिll

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9>आरधना सिर्फ नो दिन ही नहीं....
"आप सभी को नववर्ष और चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं...!!!"
"सृस्टि और प्रकुर्ति सक्ति का ही स्वरुप हैं, इनकी आरधना सिर्फ नो दिन ही नहीं....
साल भर होनी चाहिऐ...!!!"
"माता जगदम्बे आपके जीवन मे खुब ढेर सारी खुशियाँ भर दे।
मै मर जाऊँ तो सिर्फ मेरी इतनी पहचान लिख देना,
मेरे खून से मेरे माथे पर "जन्मस्थान " लिख देना,
कोई पूछे तुमसे स्वर्ग के बारे में तो एक कागज के टुकड़े में "हिन्दुस्तान" लिख देना,
ना दौलत पर गर्व करते है,
ना शोहरत पर गर्व करते है,
किया भगवान ने हिन्दुस्तान मे पैदा,
इसलिये अपनी किस्मत पर गर्व करते है......
मेरी नज़रों को ऐसी खुदाई दे
जिधर भी देखूँ मेरा वतन दिखाई दे
हवा की हो कुछ ऐसी मेहरबानियाँ
बोलू जो भारत माता की जय तो सारे देश में सुनाई दे ......

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