3>শক্তি+মাতৃPost=3***मातृ मंत्र***( 1 to 14 )
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥ रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।ज्योत्स्ना यै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥२॥ कल्याण्यै प्रणतां वृध्दै सिध्दयै कुर्मो नमो नमः ।नैऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।ख्यातै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥४॥ अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥५॥ या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शाध्दिता ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥ या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
=============================================
2>श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
श्री विंध्यवासिनी नमो नमः श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
ध्यानः नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भसम्भवा|
ततस्तो नाश यष्यामि विंध्याचल निवासिनी ||
निशुम्भशुम्भमर्दिनी, प्रचंडमुंडखंडनीम |
वने रणे प्रकाशिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||१||
त्रिशुलमुंडधारिणीं, धराविघातहारणीम |
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||२||
दरिद्रदु:खहारिणीं, संता विभूतिकारिणीम |
वियोगशोकहारणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||३||
लसत्सुलोललोचनां, लता सदे वरप्रदाम |
कपालशूलधारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||४||
करे मुदागदाधरीं, शिवा शिवप्रदायिनीम |
वरां वराननां शुभां, भजामि विंध्यवासिनीम ||५||
ऋषीन्द्रजामिनींप्रदा,त्रिधास्वरुपधारिणींम |
जले थले निवासिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||६||
विशिष्टसृष्टिकारिणीं, विशालरुपधारिणीम |
महोदरे विलासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||७||
पुरंदरादिसेवितां, मुरादिवंशखण्डनीम |
ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,,
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||८||
=========================================
3>श्री गिरिराजधार्यष्टकनम्
भक्ताभिलाषाचरितानुसारी, दुग्धादिचार्येण यशोविसारी।
कुमारितानन्दितघोषनारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।१
व्रजांगनावृन्दसदाविहारी, अंगैगृहगारतमोहारी।
क्रीड़ारसावेशतमोडभिसारि, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।२
वेणुस्वानानन्दितपन्नगारी,रसातला नृत्यपदपदप्रचारी।
क्रीडन् वयस्याकृतिदैत्यमारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।३
1>----------------मातृ मंत्र
2>----------------श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
3>----------------श्री गिरिराजधार्यष्टकनम्
4>----------------।। कामाख्या देवी ।।
5>-----------------कामाख्या तंत्र के अनुसार -योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
6>-----------------सर्वोच्च कौमारी तीर्थ
7>-----------------कामाख्या==मां दुर्गा का एक ऐसा मंदिर जहां पर नही है कोई भी मूर्ति
8>-----------------कामादेव मंदिर
9>------------------कामाख्या देवी मंदिर के बारें में
10>----------------कामाख्या मंदिर – सबसे पुराना शक्तिपीठ –
( दुर्गा पूजा ,अम्बुबाची पूजा:,पोहन बिया:,दुर्गाडियूल पूजा:,वसंती पूजा:
मडानडियूल पूजा:,Jangamwadi math (वाराणसी) :
जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान )
11>---------------कामाख्या से जुडी किवदंती (Story of Kamakhya Devi) : –
12>---------------Kamakhya Temple no one knows=16 Secrets
13------------------कामख्या देवी मंदिर गुवाहती
14>--------------कामाख्या धाम का प्रसिद्ध अंबुवासी मेला
********************************************************************************
========================================================================2>----------------श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
3>----------------श्री गिरिराजधार्यष्टकनम्
4>----------------।। कामाख्या देवी ।।
5>-----------------कामाख्या तंत्र के अनुसार -योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
6>-----------------सर्वोच्च कौमारी तीर्थ
7>-----------------कामाख्या==मां दुर्गा का एक ऐसा मंदिर जहां पर नही है कोई भी मूर्ति
8>-----------------कामादेव मंदिर
9>------------------कामाख्या देवी मंदिर के बारें में
10>----------------कामाख्या मंदिर – सबसे पुराना शक्तिपीठ –
( दुर्गा पूजा ,अम्बुबाची पूजा:,पोहन बिया:,दुर्गाडियूल पूजा:,वसंती पूजा:
मडानडियूल पूजा:,Jangamwadi math (वाराणसी) :
जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान )
11>---------------कामाख्या से जुडी किवदंती (Story of Kamakhya Devi) : –
12>---------------Kamakhya Temple no one knows=16 Secrets
13------------------कामख्या देवी मंदिर गुवाहती
14>--------------कामाख्या धाम का प्रसिद्ध अंबुवासी मेला
********************************************************************************
1>मातृ मंत्र
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥१॥ रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्र्यै नमो नमः ।ज्योत्स्ना यै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः ॥२॥ कल्याण्यै प्रणतां वृध्दै सिध्दयै कुर्मो नमो नमः ।नैऋत्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नमः ॥३॥दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै ।ख्यातै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥४॥ अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः ।नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नमः ॥५॥ या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शाध्दिता ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥६॥ या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते ।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
=============================================
2>श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
श्री विंध्यवासिनी नमो नमः श्री विंध्यवासिनी माता स्तोत्रम्
ध्यानः नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भसम्भवा|
ततस्तो नाश यष्यामि विंध्याचल निवासिनी ||
निशुम्भशुम्भमर्दिनी, प्रचंडमुंडखंडनीम |
वने रणे प्रकाशिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||१||
त्रिशुलमुंडधारिणीं, धराविघातहारणीम |
गृहे गृहे निवासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||२||
दरिद्रदु:खहारिणीं, संता विभूतिकारिणीम |
वियोगशोकहारणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||३||
लसत्सुलोललोचनां, लता सदे वरप्रदाम |
कपालशूलधारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||४||
करे मुदागदाधरीं, शिवा शिवप्रदायिनीम |
वरां वराननां शुभां, भजामि विंध्यवासिनीम ||५||
ऋषीन्द्रजामिनींप्रदा,त्रिधास्वरुपधारिणींम |
जले थले निवासिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||६||
विशिष्टसृष्टिकारिणीं, विशालरुपधारिणीम |
महोदरे विलासिनीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||७||
पुरंदरादिसेवितां, मुरादिवंशखण्डनीम |
ज्योतिष और रत्न परामर्श 08275555557,,ज्ञानचंद बूंदीवाल,,,,
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विंध्यवासिनीम ||८||
=========================================
3>श्री गिरिराजधार्यष्टकनम्
भक्ताभिलाषाचरितानुसारी, दुग्धादिचार्येण यशोविसारी।
कुमारितानन्दितघोषनारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।१
व्रजांगनावृन्दसदाविहारी, अंगैगृहगारतमोहारी।
क्रीड़ारसावेशतमोडभिसारि, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।२
वेणुस्वानानन्दितपन्नगारी,रसातला नृत्यपदपदप्रचारी।
क्रीडन् वयस्याकृतिदैत्यमारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।३
पुलिन्ददाराहितशम्बरारी, रमासदोदारदयाप्रकारी।
गोवर्धने कंदफलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।४
कालिन्दजाकूलदु फुलहारी, कुमारिकाकामकलावितारी।
वृंदावने गोधनवृन्दचारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।५
व्रजेन्द्रसर्वाधिशर्मकारी, महेन्द्रगर्वाधिकगर्वहारी।
वृन्दावने कंदफलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।६
मन:कलानाथतमोविदारी, बंशी रवाकारिततत्कुमारी।
रासोत्सवोद्वेल्लरसाब्धिसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।७
मत्तद्विपोदामगतानुकारी, लुंठत्पसूनाप्रपदीनहारी।
रामोरसस्पर्शकरप्रसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।८
।।श्री गिरीराजधरण की जय।।
===========================================
गोवर्धने कंदफलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।४
कालिन्दजाकूलदु फुलहारी, कुमारिकाकामकलावितारी।
वृंदावने गोधनवृन्दचारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।५
व्रजेन्द्रसर्वाधिशर्मकारी, महेन्द्रगर्वाधिकगर्वहारी।
वृन्दावने कंदफलोपहारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।६
मन:कलानाथतमोविदारी, बंशी रवाकारिततत्कुमारी।
रासोत्सवोद्वेल्लरसाब्धिसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।७
मत्तद्विपोदामगतानुकारी, लुंठत्पसूनाप्रपदीनहारी।
रामोरसस्पर्शकरप्रसारी, मम प्रभु: श्री गिरिराजधारी।।८
।।श्री गिरीराजधरण की जय।।
===========================================
4>।। कामाख्या देवी ।।
A>
यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्त्व है।
प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।
पौराणिक सत्य है की अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती के गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
B>कामाख्या तंत्र के अनुसार -
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया की अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की पुरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है।
तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकि विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।
कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं की कामाख्या के बारे में किंवदंती है की घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा की यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है।
गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था की महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दुसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है।
बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।
नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।
पं. दिवाकर शर्मा ने बतलाया की आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो की गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के उपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है।
यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था।
भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है।
6>सर्वोच्च कौमारी तीर्थ
[संपादन ]
सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यंत महत्त्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।
इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है की ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था।
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्त्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्त्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो की रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं।
इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं।
तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है।
मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। इसकी जगह एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीली रहती है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस जल के नियमित सेवन से बीमारियां भी दूर होती हैं।
7>कामाख्या==मां दुर्गा का एक ऐसा मंदिर जहां पर नही है कोई भी मूर्ति
असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर कामाख्या है। वहां से 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत है। जहां पर कामाख्या देवी मंदिर है। जो 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व भी है। धर्मपुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। इसी कारण यहां पर माता की योनि गिरी। जिसके कारण इसे कामाख्या नाम दिया गया है।
इस मंदिर में वैसे तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
यह भी कहा जाता है कि यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं। यह मंदिर चमत्कारों से भरा हुआ है। इस मंदिर के कई रोचक तथ्य भी है। जानिए ऐसे ही कुछ रोचक बातें जिसे आप नही जानते होगें।
कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ है। यहां पर दुर्गा या अम्बें मां की कोई भी मूर्ति नही देखनें को मिलेगी। यहां पर एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है।
8>कामादेव मंदिर
इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। माना जाता है कि यहां पर जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
9>कामाख्या देवी मंदिर के बारें में
मंदिर के है तीन भाग, पत्थर से होती है रजस्वला
कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
इस मदिंर का इतिहास
इस मंदिर को 16वीं शताब्दी में तोड़ दिया गया था, इसी के बाद राजा विश्व सिंह ने इस मंदिर की खुदाई करा करइसका निर्माण कराया, लेकिन फिर इस मंदिर को 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया था। जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने बनवाया था।
मिलता है भक्तों को अनोखा प्रसाद
इस मंदिर में प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
हो चुका है मूल मंदिर लुप्त
माना जाता है कि यहां का जो मूल मंदिर है वो गायब हो चुका है। इसके पीछें भी पौराणिक कथा है। इसके अनुसार नराका नाम के एक दानव को कामाख्या देवी से प्यार हो गया था और उसने मां को शादी का प्रस्ताव दे डाला, लेकिन देवी ने इसके लिए एक शर्त रखी कि अगर वो निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा तो वो उससे शादी कर लेंगी। नराका ने इस शर्त को मान लिया और अपने काम में लग गया। आधी रात तक उसने आधें से ज्यादा काम खत्म कर लिया तो मां को लगा कि यह शर्त जीत जाएगा। जिसके कारण मां को इससे शादी करनी पड़ेगी।
यह सोच कर मां ने एक मुर्गे का रूप घारण किया और बांग देने लगी, तो राक्षस को लगा कि सुबह हो गई है और अब वह शर्त हार गया है, लेकिन जब उसे इस बात का पता चला कि उसके साथ छल हुआ है, वह क्रोध्रित होकर उसने मुर्गे को मार देता है। जिस कारण इस पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को आज भी नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार इस मंदिर के लुप्त होने के बारें में माना जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां जन्म लेने लगी थी जिसके कारण महर्षि वशिष्ट ने क्रोधित होकर इस जगह को श्राप दे दिया। जिसके कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया।
भैरव बाबा के दर्शन के बिना है अधूरी यात्रा
किसी भी शक्ति पीठ के दर्शन के लिए आप जाते है तो बिना बाबा भैरव के दर्शन की आपकी यात्रा पूर्ण नही मानी जाती है। इसलिए हर शक्तिपाठ के आसपास भैरव बाबा का मंदिर बना होता है। इसी प्रकार कामाख्या देवी में भी है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है। कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिवार्य माना गया है
10>कामाख्या मंदिर – सबसे पुराना शक्तिपीठ –
यहाँ होती हैं योनि कि पूजा, लगता है तांत्रिकों व अघोरियों का मेला -
कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है तथा यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है। जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उस के पति शंकर को यज्ञ में अपमानित किया और शिव जी को अपशब्द कहे तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया। शंकर ने सती कि मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया। तब सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाये। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।
इस मंदिर के गर्भ गृह में योनि के आकार का एक कुंड है जिसमे से जल निकलता रहता है। यह योनि कुंड कहलाता है। यह योनि कुंड लाल कपडे व फूलो से ढका रहता है।
इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघौरी हिस्सा लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि ‘अम्बुबाची मेले’ के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है । ‘अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।
तनोट माता मंदिर (जैसलमेर) – जहा पाकिस्तान के गिराए 3000 बम हुए थे बेअसर
मां कामाख्या देवी की रोजाना पूजा के अलावा भी साल में कई बार कुछ विशेष पूजा का आयोजन होता है। इनमें पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं।
दुर्गा पूजा: –
हर साल सितम्बर-अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दौरान इस पूजा का आयोजन किया जाता है।
अम्बुबाची पूजा: –
ऐसी मान्यता है कि अम्बुबाची पर्व के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती है इसलिए तीन दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन जब मंदिर खुलता है तो इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
पोहन बिया: –
पूसा मास के दौरान भगवान कमेस्शवरा और कामेशवरी की बीच प्रतीकात्मक शादी के रूप में यह पूजा की जाती है
दुर्गाडियूल पूजा: –
फाल्गुन के महीने में यह पूजा कामाख्या में की जाती है।
वसंती पूजा: –
यह पूजा चैत्र के महीने में कामाख्या मंदिर में आयोजित की जाती है।
मडानडियूल पूजा: –
चेत्र महीने में भगवान कामदेव और कामेश्वरा के लिए यह विशेष पूजा की जाती है।
Jangamwadi math (वाराणसी) :
जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान
11>कामाख्या से जुडी किवदंती (Story of Kamakhya Devi) : –
कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि’ के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया।
कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है,
क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था।
इस पुरे मंदिर परिसर में कामाख्या देवी के मुख्य मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर है इनमे से अधिकतर मंदिर देवी के विभिन्न स्वरूपों के है। पांच मंदिर भगवान शिव के और तीन मंदिर भगवान विष्णु के है।
यह मंदिर कई बार टुटा और बना है आखरी बार इसे 16 वि सदी में नष्ट किया गया था जिसका पुनः निर्माण 17 वी सदी में राजा नर नारायण द्वारा किया गया।
======================================================
A>
यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्त्व है।
प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है।
यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।
विश्व के सभी तांत्रिकों, मांत्रिकों एवं सिद्ध-पुरुषों के लिये वर्ष में एक बार पड़ने वाला अम्बूवाची योग पर्व वस्तुत एक वरदान है। यह अम्बूवाची पर्वत भगवती (सती) का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्ष में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक वर्ष जून माह में तिथि के अनुसार मनाया जाता है। इस बार अम्बूवाची योग पर्व जून की 22, 23, 24 तिथियों में मनाया गया।
पौराणिक सत्य है की अम्बूवाची पर्व के दौरान माँ भगवती रजस्वला होती हैं और मां भगवती के गर्भ गृह स्थित महामुद्रा (योनि-तीर्थ) से निरंतर तीन दिनों तक जल-प्रवाह के स्थान से रक्त प्रवाहित होता है। यह अपने आप में, इस कलिकाल में एक अद्भुत आश्चर्य का विलक्षण नजारा है।
B>कामाख्या तंत्र के अनुसार -
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा।।
इस बारे में `राजराजेश्वरी कामाख्या रहस्य' एवं `दस महाविद्याओं' नामक ग्रंथ के रचयिता एवं मां कामाख्या के अनन्य भक्त ज्योतिषी एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा ने बताया की अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की पुरे विश्व से इस पर्व में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट लगा रहता है।
तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकि विशेष पूजा एवं साधना की जाती है।
कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं की कामाख्या के बारे में किंवदंती है की घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा की यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है।
गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था की महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दुसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है।
बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा।
नरकासुर के नीच कार्यों के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।
पं. दिवाकर शर्मा ने बतलाया की आद्य-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो की गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के उपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है।
यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था।
भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही कामदेव को पुन जीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता है।
6>सर्वोच्च कौमारी तीर्थ
[संपादन ]
सती स्वरूपिणी आद्यशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिए इस शक्तिपीठ में कौमारी-पूजा अनुष्ठान का भी अत्यंत महत्त्व है। यद्यपि आद्य-शक्ति की प्रतीक सभी कुल व वर्ण की कौमारियाँ होती हैं। किसी जाति का भेद नहीं होता है। इस क्षेत्र में आद्य-शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान हैं।
इस क्षेत्र में सभी वर्ण व जातियों की कौमारियां वंदनीय हैं, पूजनीय हैं। वर्ण-जाति का भेद करने पर साधक की सिद्धियां नष्ट हो जाती हैं। शास्त्रों में वर्णित है की ऐसा करने पर इंद्र तुल्य शक्तिशाली देव को भी अपने पद से वंछित होना पड़ा था।
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्त्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्त्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो की रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं।
इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं।
तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है।
मंदिर के गर्भगृह में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। इसकी जगह एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्रकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीली रहती है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस जल के नियमित सेवन से बीमारियां भी दूर होती हैं।
7>कामाख्या==मां दुर्गा का एक ऐसा मंदिर जहां पर नही है कोई भी मूर्ति
असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर कामाख्या है। वहां से 10 किलोमीटर दूर नीलाचंल पर्वत है। जहां पर कामाख्या देवी मंदिर है। जो 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व भी है। धर्मपुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। इसी कारण यहां पर माता की योनि गिरी। जिसके कारण इसे कामाख्या नाम दिया गया है।
इस मंदिर में वैसे तो हर समय भक्तों की भीड़ लगी होती है, लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
यह भी कहा जाता है कि यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं। यह मंदिर चमत्कारों से भरा हुआ है। इस मंदिर के कई रोचक तथ्य भी है। जानिए ऐसे ही कुछ रोचक बातें जिसे आप नही जानते होगें।
कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ है। यहां पर दुर्गा या अम्बें मां की कोई भी मूर्ति नही देखनें को मिलेगी। यहां पर एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है।
8>कामादेव मंदिर
इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। माना जाता है कि यहां पर जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
9>कामाख्या देवी मंदिर के बारें में
मंदिर के है तीन भाग, पत्थर से होती है रजस्वला
कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
इस मदिंर का इतिहास
इस मंदिर को 16वीं शताब्दी में तोड़ दिया गया था, इसी के बाद राजा विश्व सिंह ने इस मंदिर की खुदाई करा करइसका निर्माण कराया, लेकिन फिर इस मंदिर को 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसे तोड़ दिया था। जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने बनवाया था।
मिलता है भक्तों को अनोखा प्रसाद
इस मंदिर में प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
हो चुका है मूल मंदिर लुप्त
माना जाता है कि यहां का जो मूल मंदिर है वो गायब हो चुका है। इसके पीछें भी पौराणिक कथा है। इसके अनुसार नराका नाम के एक दानव को कामाख्या देवी से प्यार हो गया था और उसने मां को शादी का प्रस्ताव दे डाला, लेकिन देवी ने इसके लिए एक शर्त रखी कि अगर वो निलांचल पर्वत पर सीढ़ियां बना देगा तो वो उससे शादी कर लेंगी। नराका ने इस शर्त को मान लिया और अपने काम में लग गया। आधी रात तक उसने आधें से ज्यादा काम खत्म कर लिया तो मां को लगा कि यह शर्त जीत जाएगा। जिसके कारण मां को इससे शादी करनी पड़ेगी।
यह सोच कर मां ने एक मुर्गे का रूप घारण किया और बांग देने लगी, तो राक्षस को लगा कि सुबह हो गई है और अब वह शर्त हार गया है, लेकिन जब उसे इस बात का पता चला कि उसके साथ छल हुआ है, वह क्रोध्रित होकर उसने मुर्गे को मार देता है। जिस कारण इस पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को आज भी नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार इस मंदिर के लुप्त होने के बारें में माना जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां जन्म लेने लगी थी जिसके कारण महर्षि वशिष्ट ने क्रोधित होकर इस जगह को श्राप दे दिया। जिसके कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया।
भैरव बाबा के दर्शन के बिना है अधूरी यात्रा
किसी भी शक्ति पीठ के दर्शन के लिए आप जाते है तो बिना बाबा भैरव के दर्शन की आपकी यात्रा पूर्ण नही मानी जाती है। इसलिए हर शक्तिपाठ के आसपास भैरव बाबा का मंदिर बना होता है। इसी प्रकार कामाख्या देवी में भी है। इस मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है। कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिवार्य माना गया है
10>कामाख्या मंदिर – सबसे पुराना शक्तिपीठ –
यहाँ होती हैं योनि कि पूजा, लगता है तांत्रिकों व अघोरियों का मेला -
कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है तथा यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है। जब सती के पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उस के पति शंकर को यज्ञ में अपमानित किया और शिव जी को अपशब्द कहे तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया। शंकर ने सती कि मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया। तब सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाये। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी स्थल पर कामाख्या मन्दिर का निर्माण किया गया।
इस मंदिर के गर्भ गृह में योनि के आकार का एक कुंड है जिसमे से जल निकलता रहता है। यह योनि कुंड कहलाता है। यह योनि कुंड लाल कपडे व फूलो से ढका रहता है।
इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघौरी हिस्सा लेते हैं। ऐसी मान्यता है कि ‘अम्बुबाची मेले’ के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिन में योनि कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है । ‘अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।
तनोट माता मंदिर (जैसलमेर) – जहा पाकिस्तान के गिराए 3000 बम हुए थे बेअसर
मां कामाख्या देवी की रोजाना पूजा के अलावा भी साल में कई बार कुछ विशेष पूजा का आयोजन होता है। इनमें पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं।
दुर्गा पूजा: –
हर साल सितम्बर-अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दौरान इस पूजा का आयोजन किया जाता है।
अम्बुबाची पूजा: –
ऐसी मान्यता है कि अम्बुबाची पर्व के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती है इसलिए तीन दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन जब मंदिर खुलता है तो इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
पोहन बिया: –
पूसा मास के दौरान भगवान कमेस्शवरा और कामेशवरी की बीच प्रतीकात्मक शादी के रूप में यह पूजा की जाती है
दुर्गाडियूल पूजा: –
फाल्गुन के महीने में यह पूजा कामाख्या में की जाती है।
वसंती पूजा: –
यह पूजा चैत्र के महीने में कामाख्या मंदिर में आयोजित की जाती है।
मडानडियूल पूजा: –
चेत्र महीने में भगवान कामदेव और कामेश्वरा के लिए यह विशेष पूजा की जाती है।
Jangamwadi math (वाराणसी) :
जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान
11>कामाख्या से जुडी किवदंती (Story of Kamakhya Devi) : –
कामाख्या के शोधार्थी एवं प्राच्य विद्या विशेषज्ञ डॉ. दिवाकर शर्मा कहते हैं कि कामाख्या के बारे में किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि’ के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया।
कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के निकट ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य भाग में टापू के ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है,
क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव ने उसे भस्म कर दिया था।
इस पुरे मंदिर परिसर में कामाख्या देवी के मुख्य मंदिर के अलावा और भी कई मंदिर है इनमे से अधिकतर मंदिर देवी के विभिन्न स्वरूपों के है। पांच मंदिर भगवान शिव के और तीन मंदिर भगवान विष्णु के है।
यह मंदिर कई बार टुटा और बना है आखरी बार इसे 16 वि सदी में नष्ट किया गया था जिसका पुनः निर्माण 17 वी सदी में राजा नर नारायण द्वारा किया गया।
======================================================
I2>Kamakhya Temple no one knows=16 Secrets
The Kamakhya Temple is a Hindu temple dedicated to the mother Goddess Kamakhya, one of the oldest shakti peeths.
While there are many unheard stories about this temple, today we are going to tell you 16 secrets of this temple you would have never heard of.
1=Kamakhya Temple, Assam is one among the 52 shakti peeths of India. Kamakhya Temple is situated at the top of Ninanchal Hill (800 feet above sea level) in the Western part of Guwahati city. There is no image of Shakti here. Witin a corner of the cave in the temple, there is sculptored image of the yoni of the goddess, which is the object of reverence. A natural spring keeps the stone moist. Other temples on the Ninanchal Hill include those of Tara, Bhairavi, Bhuvaneshwari and Ghantakarna.
2=This temple was destroyed in early 16th century and then rebuilt in the 17th century by king Nara Narayana of Cooch Bihar.
3=The current temple has a beehive-like Shikhara with delightful sculptured panels and images of Ganesha and other Hindu Gods and Goddesses on the outside.
4=The temple consists of three major chambers. The western chamber is large and rectangular and is not used by general pilgrims for worship. The middle chamber is a square with a small idol of the Goddess, a later addition. The walls of this chamber contain sculpted images of Nara Narayana, related inscriptions and other Gods.
The middle chamber leads to the sanctum of the temple in the form of a cave, which consists of no image, but a natural underground spring that flows through a yoni-shaped cleft in the bedrock.
5=Legend
Sati married Lord Shiva against the wish of her father, king Daksha. Once king Daksha was having a yagna, but he didn’t invite Sati and Shiva. Sati was very upset, but she still went to her father’s palace. When she reached there, her father insulted her and Shiva. Sati was unable to bear this disrespect for her husband Shiva, so she jumped in the yagna fire and killed herself.
When Lord Shiva came to know about this, he got very angry. Enraged Shiva wondered while holding the dead body of Sati in his arms. He started the dance of destruction of the universe. Lord Vishu in order to save the universe, cut the body of Sati into pieces with his Sudarshan chakra. Body parts of Sati fell at different places and these places are known as shakti peeths.
6=In Kamakhya temple, yoni of the Goddess fell.
7=Story about the stair case of the temple
There was a demon Naraka who fell in love with Goddess Kamakhya and wanted to marry her. Goddess put a condition that if he would be able to build a staircase from the bottom of the Ninanchal Hill to the temple within one night, then she would surely marry him.
8=Naraka took it as a challenge and tried all with his might to do this marathon task. He was almost about to accomplish the job when the Devi, panic-stricken as she was to see this, played a trick on him. She strangled a cock and made it crow untimely to give the impression of dawn to Naraka. Duped by the trick, Naraka thought it was a futile job and left it half way through. Later he chased the cock and killed it in a place which is now known as Kukurakata, situated in the district of Darrang. The incomplete staircase is known as Mekhelauja path.
9=Apart from the daily puja offered to the Devi, a number of special pujas are also held round the year in Kamakhya Temple. These pujas are Durga Puja, Pohan Biya, Durgadeul, Vasanti puja, Madandeul, Ambuvaci and Manasa puja.
10=Durga Puja: This is celebrated annually during Navratri, in the month of September-October.
11=Ambuwasi Puja: This is a fertility festival. It is believed that the Goddess goes under menstrual period and the temple remains closed for 3 days and then opened with great festivity on fourth day.
12=Pohan Biya: A symbolic marriage between Lord Kamesvara and Kamesvari during the month of Pausa.
13=Durgadeul: During the month of Phalguna, Durgadeul is observed in Kamakhya.
14=Vasanti Puja: This puja is held at Kamakhya temple in the month of Chaitra.
15=Madandeul: This deul is observed during the month of Chaitra when Lord Kamadeva and Kamesvara is offered special puja.
16=Manasa Puja: Manasa Puja is observed with Sankranti or Sravana and continues up to the second day of Bhadra.
When Lord Shiva came to know about this, he got very angry. Enraged Shiva wondered while holding the dead body of Sati in his arms. He started the dance of destruction of the universe. Lord Vishu in order to save the universe, cut the body of Sati into pieces with his Sudarshan chakra. Body parts of Sati fell at different places and these places are known as shakti peeths.
6=In Kamakhya temple, yoni of the Goddess fell.
7=Story about the stair case of the temple
There was a demon Naraka who fell in love with Goddess Kamakhya and wanted to marry her. Goddess put a condition that if he would be able to build a staircase from the bottom of the Ninanchal Hill to the temple within one night, then she would surely marry him.
8=Naraka took it as a challenge and tried all with his might to do this marathon task. He was almost about to accomplish the job when the Devi, panic-stricken as she was to see this, played a trick on him. She strangled a cock and made it crow untimely to give the impression of dawn to Naraka. Duped by the trick, Naraka thought it was a futile job and left it half way through. Later he chased the cock and killed it in a place which is now known as Kukurakata, situated in the district of Darrang. The incomplete staircase is known as Mekhelauja path.
9=Apart from the daily puja offered to the Devi, a number of special pujas are also held round the year in Kamakhya Temple. These pujas are Durga Puja, Pohan Biya, Durgadeul, Vasanti puja, Madandeul, Ambuvaci and Manasa puja.
10=Durga Puja: This is celebrated annually during Navratri, in the month of September-October.
11=Ambuwasi Puja: This is a fertility festival. It is believed that the Goddess goes under menstrual period and the temple remains closed for 3 days and then opened with great festivity on fourth day.
12=Pohan Biya: A symbolic marriage between Lord Kamesvara and Kamesvari during the month of Pausa.
13=Durgadeul: During the month of Phalguna, Durgadeul is observed in Kamakhya.
14=Vasanti Puja: This puja is held at Kamakhya temple in the month of Chaitra.
15=Madandeul: This deul is observed during the month of Chaitra when Lord Kamadeva and Kamesvara is offered special puja.
16=Manasa Puja: Manasa Puja is observed with Sankranti or Sravana and continues up to the second day of Bhadra.
===============================================================
कामख्या धाम का प्रसिद्ध अंबुवासी मेला
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं।
13>कामख्या देवी मंदिर गुवाहती
kamakhya devi yoni pooja कामख्या देवी मंदिर 51 शक्ति पीठो में से के है | यह मंदिर असम के गुवाहती शहर से 8 किलोमीटर पत्चिम में नीलांचल पर्वत पर स्तिथ है | यह मंदिर तान्त्रिक पुजारियो को तंत्र मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए सर्वोपरी मंदिर है | यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी।
kamakhya devi yoni pooja कामख्या देवी मंदिर 51 शक्ति पीठो में से के है | यह मंदिर असम के गुवाहती शहर से 8 किलोमीटर पत्चिम में नीलांचल पर्वत पर स्तिथ है | यह मंदिर तान्त्रिक पुजारियो को तंत्र मंत्र सिद्धि प्राप्त करने के लिए सर्वोपरी मंदिर है | यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने जब देवी सती के शव को चक्र से काटा तब इस स्थान पर उनकी योनी कट कर गिर गयी।
इसी मान्यता के कारण इस स्थान पर देवी की योनी की पूजा होती है। प्रत्येक वर्ष तीन दिनों के लिए यह मंदिर पूरी तरह से बंद रहता है। माना जाता है कि माँ कामाख्या इस बीच रजस्वला होती हैं। और उनके शरीर से रक्त निकलता है। इस दौरान शक्तिपीठ की अध्यात्मिक शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए देश के विभिन्न भागों से यहां तंत्रिक और साधक जुटते हैं। आस-पास की गुफाओं में रहकर वह साधना करते हैं।
चौथे दिन माता के मंदिर का द्वार खुलता है। माता के भक्त और साधक दिव्य प्रसाद पाने के लिए बेचैन हो उठते हैं। यह दिव्य प्रसाद होता है लाल रंग का वस्त्र जिसे माता राजस्वला होने के दौरान धारण करती हैं। माना जाता है वस्त्र का टुकड़ा जिसे मिल जाता है उसके सारे कष्ट और विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं। मौजुदा मंदिर नीलांचल कला में बना हुआ है | मंदिर का निर्माण 7वी शताबदी से 17 वी शताबदी तक बदलता रहा है | मंदिर में 7 छोटी शिखर है जिनपे शिवजी के त्रिशूल लगे हुए है |
कामख्या धाम का प्रसिद्ध अंबुवासी मेला
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं।
मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये है
====================================================================
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं।
मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं
कामख्या देवी मंदिर गुवाहती के दर्शन फोटो
====================================================================
14>कामाख्या धाम का प्रसिद्ध अंबुवासी मेला
जिस प्रकार उत्तर भारत में कुंभ महापर्व का महत्व माना जाता है, ठीक उसी प्रकार उससे भी श्रेष्ठ इस आद्यशक्ति के अम्बूवाची पर्व का महत्व है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य आलौकिक शक्तियों का अर्जन तंत्र-मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र-शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर स्थिर रखते हैं। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भगृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं।
मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि बंगलादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी इत्यादि तंत्र साधक भी सांवर तंत्र में अपना यहीं स्थान बनाकर अमर हो गये हैं
कामख्या देवी मंदिर गुवाहती के दर्शन फोटो
===========================================================
No comments:
Post a Comment